इस दिल का धड़कना क्या कहिये
हम आप की आँखों में रह लिए
अब आप कहीं भी जा रहिये
इस दिल का धड़कना क्या कहिये
सारी रात नहीं कहीं चैन इसे
सारे दिन भी धड़कता रहता है
सारी सुबहें कहीं छुप जाएँ मगर
शामों को नज़र में ही तहिये
इस दिल का धड़कना क्या कहिये
मैं तो रोती रहूँ जब देखूं तुझे
सब नज़ारे नज़र में भरते हैं
हम यहाँ हैं वहां हैं आप खड़े
यूँ दर्दे जिगर फिर क्यूँ सहिये
इस दिल का धड़कना क्या कहिये
अब चाहिए नहीं कुछ भी हमें
देखा है हमने जब से तुम्हें
हमें मिलता रहे अहसास यूँही
खूं बन के मेरी रग में बहिये
इस दिल का धड़कना क्या कहिये।
अच्छी रचना। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteराजभाषा हिंदी पर मुग़ल काल में सत्ता का संघर्ष
मनोज पर फ़ुरसत में...भ्रष्टाचार पर बतिया ही लूँ !
बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteword verification hata dijiye jyada time lagta hai
ReplyDelete