Friday, October 22, 2010

गिला

हैं तो हम तेरी पनाहों के तलबगार मगर
मुश्किलें और भी हैं बीच की दूरी के सिवा

तुमको मुझ तक भी नहीं लाता है और
मुझको भी रोकता है तुम तक जाने से खुदा

जब भी चाह कि मैं बढाऊँ कदम राह तेरी
दब के ही रह गई सीने में वो आह मेरी

कुछ तेरा गम है मुझे और थोड़ी ख़ामोशी
और कुछ हमको है किस्मत से भी गिला।

2 comments:

  1. कुछ तेरा गम है मुझे और थोड़ी ख़ामोशी
    और कुछ हमको है किस्मत से भी गिला।
    अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं.... बहुत सुंदर कविता....

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