हैं तो हम तेरी पनाहों के तलबगार मगर
मुश्किलें और भी हैं बीच की दूरी के सिवा
तुमको मुझ तक भी नहीं लाता है और
मुझको भी रोकता है तुम तक जाने से खुदा
जब भी चाह कि मैं बढाऊँ कदम राह तेरी
दब के ही रह गई सीने में वो आह मेरी
कुछ तेरा गम है मुझे और थोड़ी ख़ामोशी
और कुछ हमको है किस्मत से भी गिला।
कुछ तेरा गम है मुझे और थोड़ी ख़ामोशी
ReplyDeleteऔर कुछ हमको है किस्मत से भी गिला।
अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं.... बहुत सुंदर कविता....
Thanks Sanjay ji
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