नज़रों से तमाम अश्क गिराए हैं रात भर
तुम्हें याद करके जख्म जगाये हैं रात भर
तुम ख्याल में मेरे थे या के दूर कहीं थे
तुम्हें दूर जान लब ये बुलाये हैं रात भर
मेरे दर्द मुझे ढूंढें उजालों में पनप कर
मैंने चराग फूंक बुझाये हैं रात भर
तन्हाईयाँ हैं साथी अश्कों से सजी महफ़िल
सब यार मैंने दूर भगाए हैं रात भर
सुबह का साथ मेरा अब दिल लुभाएगा
नज़रों से ख़ाब चाँद ने चुराए हैं रात भर
तुम्हें याद करके जख्म जगाये हैं रात भर
No comments:
Post a Comment