Friday, October 22, 2010

साये

मुझे तेरी मुहब्बत के साये अक्सर ही बहुत तड़पाते हैं
मैं भूलना चाहती हूँ जो पल मुझे भूल से वो याद आते हैं

कुछ धुंधली- धुंधली बात तेरी आंसू से भीगी रात मेरी
दोनों तेरी गली ले जाते हैं और तेरी महक ले आते हैं

जब आज भी पत्ते गिरते हैं मेरे दामन में उड़कर के
कभी फूल जो तुमने फेंके थे वो ही अहसास दिलाते हैं

आँखों से छुआ था तुमने मुझे हाथ नहीं थामा था मेरा
दर्द भरे नगमे तेरे लब के मुझे आज भी तर कर जाते हैं

बिखरे थे कभी जो साँसों में तेरी साँसों के शोले वो
मुझे जाने क्या हलचल दे गए हरदम मेरा मन जलाते हैं।

2 comments:

  1. कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई

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