मुझसे चाँद आके मिला कहने लगा और ये के
हैं तुम्हारे ही ये आंसू हैं जो तारे बनकर
अब शर्मिंदा हैं हम खुद पे ही ऐ यार मेरे
दे रहे दर्द ये कैसा हम तुम्हारे बनकर
भूलेंगे हम न कभी भी वो सुहानी सी घड़ी
जब तक तुम साथ थे साथ- साथ चल के मेरे
अब तो हर पल है यहाँ तन्हाई और अँधेरा
कल तक फिरे हम फिजां में बहारें बनकर
मुझको हैं क़ुबूल ये जो आसमां के तारे हैं
तेरी आँखें हैं या आकाश का पैमाना हैं
छलका नहीं एक भी तारा इन्तजार किया
हम नशे में भी साथ चलते किनारे बनकर
अब तो अहसास तेरा सांस के संग चलता है
अब तो खुशबू तेरी फैली है मेरी नस- नस में
तू भले दूर रहे साथ फिर भी रहता है
मेरे लिए सैकड़ों हजारों सहारे बनकर
अहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं
ReplyDeleteअब शर्मिंदा हैं हम खुद पे ही ऐ यार मेरे
ReplyDeleteदे रहे दर्द ये कैसा हम तुम्हारे बनकर
सुंदर रचना के लिए साधुवाद
Thanks Sanjay
ReplyDeleteThanks sunil ji
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