Tuesday, April 21, 2020

पृथ्वी

पृथ्वी की छत पर हम सारे खड़े हैं,
पृथ्वी के भीतर हम सबकी जड़ें हैं।

नहीं बस पेड़-पौधे पृथ्वी की हैं प्रकृति, 
सभी इंसान चलाचल पृथ्वी की हैं आकृति,
फिर भी मेरा ये मेरा करके सब ही लड़े हैं,
पृथ्वी की छत पर हम सारे खड़े हैं। 

देखना हम सबको है झाँक कर अपने भीतर,
मन है उजला हमारा या कि तम ही तम अंतर,
लगी कालिख कि हम सब इसमें नग से जड़े हैं,
पृथ्वी की छत पर हम सारे खड़े हैं।

दे रहे क्या वापस हम पृथ्वी को उसके बदले,
जो भी उसने दिया है चीर सीना कि 'रख ले',
हम क्या दिखा पायेंगे दिल से कितने बड़े हैं,
पृथ्वी की छत पर हम सारे खड़े हैं।

स्वर्ग पृथ्वी को करके पक्ष में इसके ही धर दें,
के जो भी अब करेंगे नाम पृथ्वी के कर दें,
कर तो सकते हैं वो सब जिद पे जो भी अड़े हैं,
पृथ्वी की छत पर हम सारे खड़े हैं।

पृथ्वी से ही उपजे हैं पृथ्वी में ही जाना है,
जो भी इससे लिया है सभी कुछ लौटाना है,
मोह जो करते धन का बन के मिट्टी पड़े हैं,
पृथ्वी की छत पर हम सारे खड़े हैं,
पृथ्वी के भीतर हम सबकी जड़ें हैं।


Monday, September 15, 2014

लोगों के चाँद पर जाने में
कितने ताने-बाने,
मुझे चाँद पर थपका कर
भेज दिया माँ ने |

लोगों को चाँद पर मिलती है,
मिट्टी, हवा, न धूल,
मैं परियों को चाँद पर पाकर
जग ये गया हूँ भूल |

लोगों ने परखा है चाँद पर
साँसें हैं न जीवन,
मैंने वहाँ लीं अनगिन साँसें
जी भर जिया है बचपन |

मुश्क़िल है लोगों का चाँद पर
एक बार ही जाना,
मैं हर रात होता हूँ चाँद पर
जब हो नींद का आना

Sunday, September 14, 2014

हिन्दी हमारा अभिमान

हिन्दी जड़ सब भाषाओं की
ज्ञानी जन ये कह कर गये.
सच है ये सब ज़रा तो सोचो,
क्यों वो सब ये कह कर गये?

अंग्रेज कहते हैं इंग्लिश
उसमें अक्षर इ, ग, ल, श,
स्पेनी कहते स्पेनिश,
उसमें स, प, न, श,

जापानी कहते जापानीज,
उसमें अक्षर ज, प, न, ज,
चाइना वासी कहते चाइनीज,
उसमें च, इ, न, ज,

बँग्लादेशी कहते बँग्ला,
उसमें अक्षर ब, ग, ल,
श्रीलंकाई कहते तमिल,
उसमें त, म, ल,

पाक़िस्तानी कहते उर्दू,
उसमें अक्षर उ, र, द,
अरेबियन कहते हैं अरबी,
उसमें अ, र, ब,

रशा निवासी कहते रशियन,
उसमें अक्षर र, श, य, न,
इटली वासी कहते इटैलियन,
उसमें इ, ट, ल, य, न,

फ्राँसीसी कहते हैं फ्रेंच,
उसमें अक्षर फ और च
तिब्बत वासी कहते तिब्बती
उसमें त, ब, त,

नेपाली कहते हैं मैथिली,
उसमें अक्षर म, थ, ल,
अफ्रीकी कहते हैं जुलु,
उसमें ज और ल,

हर भाषा में है हिन्दी अक्षर,
हिन्दी में है क्या, कोई भाषा?
हिन्दी ने अ से ज्ञ तक,
हर भाषा को स्वयं से तराशा,

अब महत्व हिन्दी का मानो,
क्षमता हिन्दी की पहचानो,
शर्म नहीं आदर दो इसको,
महिमा हिन्दी की जानो,

क्षेत्र- क्षेत्र की भाषाओं से,
हिन्दी को अब मत बाँटो,
अपनी- अपनी भाषाओं से,
हिन्दी के अक्षर छाँटो,

अलग़ नहीं कर पाओगे,
ख़ुद को अ से ज्ञ तक,
अ से अधूरा ज्ञ से ज्ञान,
पहुँचाये ग़र्त के पथ तक,

सब सम्मिलित है हिन्दी में ही,
मानो और सम्मान करो,
हम हिन्दुस्तानी भाषा हिन्दी,
इस वक्तव्य पर अभिमान करो |

Monday, July 8, 2013

रूद्र का प्रचण्ड अवतार।

बदहाली पर 'केदार' की
खुशहाल हुआ केदार,
माँ लौटी, लौटे पिता
देख प्रचण्ड अवतार रूद्र का
देख प्रचण्ड अवतार।

खुशहाली पर 'केदार' की
बेहाल हुआ करतार,
न पत्नी लौटी न बच्चा
उजड़ गया संसार ,

देख प्रचण्ड अवतार रूद्र का
देख प्रचण्ड अवतार।


मानो शिव ने खोल जटा
गंगा पृथ्वी पे बुलाई हो,
कभी न देखा इतने प्राणी लील
नदी हर्षाई हो।

पर आवेग देख तरणी का
ग्राम सभी जो विलुप्त हुए,
कोई जान सका न नदी में
कितने प्राणी सुप्त हुए।

बस जायगा फिर 'केदार'
धाम वहीं बन जाएगा,
फिर पूजा जाएगा शिव को
फिर मजमा लग जाएगा

पर करतार का पत्नी बच्चा
कभी न वापस आयेगा,
क्या करतार उन्हें लेने
'केदार' कभी फिर जाएगा


फिर खुशहाली पर 'केदार' की
बेहाल हुआ करतार,
न पत्नी लौटी न बच्चा
उजड़ गया संसार ,

देख प्रचण्ड अवतार रूद्र का
देख प्रचण्ड अवतार।


Friday, February 24, 2012

ख्वाहिश

यूं लगूं मैं तुम्हारे सीने से 
दिल मेरा बेक़रार हो जाए 

अब तक होंठों ने जो कहा नहीं कुछ 
आज होंठों की हार हो जाए 

खुद से मेरा भरोसा टूटे तो 
तुमपे बस ऐतबार हो जाए 

मसला मैंने जिसे कलियों की तरह 
दिल में फिर वो ही प्यार हो जाये 

रातें मेरी हों रातों की रानी 
दिन हर मेरा बहार हो जाए 

तुमसे मिलने की एक ही ख्वाहिश 
तुमसे मिलकर हजार हो जाए 

यूं लगूं मैं तुम्हारे सीने से 
दिल मेरा बेक़रार हो जाए 

Wednesday, December 7, 2011

तेरा जाना

खो गया मेरा अपना उसको कहाँ से लाऊँ
कहाँ- कहाँ पुकारूं और मैं कहाँ जाऊं

दर- दर जगह- जगह में तुम याद बन बसे हो
हर चीज़ में छुपे हो हर आस में सजे हो
क्या मिन्नतें करूँ कि तुमको मैं फिर से पाऊँ
कहाँ- कहाँ पुकारूं और मैं कहाँ जाऊं

हर पल में तुमको चाहा हर पल में तुम बसे थे
दिल को भी छू के देखा धड़कन में तुम सजे थे
जो तुमसे थी धड़कती धड़कन वो क्या सुनाऊँ
कहाँ- कहाँ पुकारूं और मैं कहाँ जाऊं

मैं खत्म करूँ कैसे किस्सा जो बन गया है
मेरी जिंदगी का आकर हिस्सा जो बन गया है
किस- किस को मैं सुनाऊँ ये हाल क्या बताऊँ
कहाँ- कहाँ पुकारूं और मैं कहाँ जाऊं

मैं चीख के कहती हूँ मेरा सब तो खो गया है
मेरी आँख से जो गिरते कौन आंसू बो गया है
जो बोझ अब है दिल पे पलकों पे मैं उठाऊँ
कहाँ- कहाँ पुकारूं और मैं कहाँ जाऊं

मन इतना भर गया है खाली न हो रहा है 
है तू नहीं लेकिन ये तेरी  याद संजो रहा है
रब करे ये तुझको हरदम तेरी याद से मैं पाऊँ
कहाँ- कहाँ पुकारूं और मैं कहाँ जाऊं
खो गया मेरा अपना उसको कहाँ से लाऊँ



Tuesday, October 18, 2011

जांच-पड़ताल

पलक अलक का कैसा मायाजाल है?

पुष्प गुच्छ सी अलक गिराती
झप-झप, झप-झप पलक झुकाती
ह्रदय की मन में धड़क-धड़क धक् उछाल है. 


उलझे रेशम फैले स्कंधों पर गिरकर
ताने-बाने बिने नयन पर जैसे बुनकर
शब्दों से गोरे मुख की क्या पड़ताल है?

जांच सको तो उड़ें जो अलकें पकड़ो उनको
फिर न गिर सकें नयन नयन से जकड़ो उनको
फिर देखो कि प्रेम का कैसा उबाल है.