Thursday, December 30, 2010

दीवानगी

दीवानगी है इतनी कैसे दिखाएँ तुमको
ख़ुशी से दूर हुए हैं क्या बताएं तुमको

तड़प है आँख में जो हर कहीं सताती है
ये नींद कैसी है जो रात भर जगाती है
मगर खलिश ये है कि कैसे जगाएं तुमको
दीवानगी है इतनी कैसे दिखाएँ तुमको

उदास रात में जो राह से गुजरते हैं
दिखे थे तुम जहाँ उस जगह पे ठहरते हैं
कहाँ से देके सदा कैसे बुलाएं तुमको
दीवानगी है इतनी कैसे दिखाएँ तुमको

दीवानगी है इतनी कैसे दिखाएँ तुमको
ख़ुशी से दूर हुए हैं क्या बताएं तुमको

Monday, December 20, 2010

दिल में घर

आँखों से उतर के दिल में मेरे घर बना लिया
इतना तो आसां न था मेरे दिल का रास्ता

रहने लगे हक-ब-हक खबर भी नहीं दी
इसी कोने में रहता था मैं फिकर भी नहीं की
अब तो जो हो रहा है वो नया सा है जज्बा
इतना तो आसां था मेरे दिल का रास्ता

पहचान पूछता रहा अनजान जान बन गए
कर लिया कब्ज़ा खुदगर्ज बेईमान बन गए
दिल लेके हमें प्यार का सपना दिखा दिया
इतना तो आसां था मेरे दिल का रास्ता

आँखों से उतर के दिल में मेरे घर बना लिया
इतना तो आसां था मेरे दिल का रास्ता

Friday, December 3, 2010

नाता

जो तुमसे अजब सा नाता है
सबसे ये कहाँ निभ पाता है
जो तुमसे अजब सा नाता है

हम जलते- जलते रहते हैं
जब भी इसमें कोइ आता है
जो तुमसे अजब सा नाता है

तुम जान भले लो जुदा मत होना
हर दर्द सहा नहीं जाता है
जो तुमसे अजब सा नाता है

किसी रोज़ हम मिलें

रब हो तो दुआ कर कि किसी रोज़ हम मिलें
ऐ मेरे खुदा कर कि किसी रोज़ हम मिलें
रब हो तो दुआ कर कि किसी रोज़ हम मिलें

जो दिल के ज़ख्म हैं सभी तुमसे ही कहने हैं
आँखों से कहा कर कि किसी रोज़ हम मिलें
मेरे खुदा कर कि किसी रोज़ हम मिलें

चाहो जो मुझे मिलना उम्मीद में इसी
चाहत से वफ़ा कर कि किसी रोज़ हम मिलें
मेरे खुदा कर कि किसी रोज़ हम मिलें

अरदास में रब की जाकर के यही माँगा
मौक़ा तो अता कर कि किसी रोज़ हम मिलें
मेरे खुदा कर कि किसी रोज़ हम मिलें

Wednesday, November 24, 2010

प्यार है या कोइ और

सपनों में मेरे रहा करे फिर भी मुझे खुद से जुदा कहे
ये प्यार है या कोइ और जिसकी नज़र दिल छुआ करे

बातें हैं जिसकी लब पे वही मुझसे कहे तुम नहीं सही
जो मैंने सोचा था वो प्यार की बातें उसने क्यों न कहीं
प्यार को खुदा कहे पर प्यार से जुदा रहे
ये प्यार है या कोइ और जिसकी नज़र दिल छुआ करे

हमको दीवाना जिसने बनाया प्यार का पाठ जिसने सिखाया
उसको दिया दिल तो उसने मेरे प्यार को बेवकूफी बताया
दिल में मेरे जिसकी झलक है लब न जिसे बेवफा कहे
ये प्यार है या कोइ और जिसकी नज़र दिल छुआ करे

सपनों में मेरे रहा करे फिर भी मुझे खुद से जुदा कहे
ये प्यार है या कोइ और जिसकी नज़र दिल छुआ करे

Saturday, November 20, 2010

सज़ा

अब तो ये जिस्म सज़ा लगता है
तेरे बिन बददुआ लगता है

तुमसे हट के थी मांगी तन्हाई
मेरी तन्हाई में इक शोर मचा लगता है

सर्द सा शोर उठा दिल में कहीं
दिल भी अब बाजुबां लगता है

बेजुबान हो गए हैं लफ्ज मेरे
नज़रों को लफ्ज मिला लगता है

मिल के तुमसे हुए दूर गिले
तुमसे हर शिकवा बयाँ लगता है

अब बयाँ कुछ भी कहीं और नहीं
तुमसे मिलना ही अब तो नया लगता है
अब तो ये जिस्म सज़ा लगता है

Monday, November 15, 2010

जाने क्यों

जाने क्यों ----------
दिल लगा के कहीं खो दिया जाने क्यों
जाने क्यों ----

फासलों से नहीं हम डरे थे मगर
पास आकर ये दिल रो दिया जाने क्यों
जाने क्यों ----

हाले दिल जितने भी खींचे थे अम्बर पर
आँखों से बदली ने धो दिया जाने क्यों
जाने क्यों ----

है शिकायत यही रब ने भी क्या चली
मन भीगी यादों से भिगो दिया जाने क्यों
जाने क्यों ----

जब भी पलटे यही पाया वो था खड़ा
हर बार दिल जानकर भी उसको दिया जाने क्यों
जाने क्यों ----

जाने kyon

Saturday, October 30, 2010

आँखों में रह लिए

इस दिल का धड़कना क्या कहिये
हम आप की आँखों में रह लिए
अब आप कहीं भी जा रहिये
इस दिल का धड़कना क्या कहिये

सारी रात नहीं कहीं चैन इसे
सारे दिन भी धड़कता रहता है
सारी सुबहें कहीं छुप जाएँ मगर
शामों को नज़र में ही तहिये
इस दिल का धड़कना क्या कहिये

मैं तो रोती रहूँ जब देखूं तुझे
सब नज़ारे नज़र में भरते हैं
हम यहाँ हैं वहां हैं आप खड़े
यूँ दर्दे जिगर फिर क्यूँ सहिये
इस दिल का धड़कना क्या कहिये

अब चाहिए नहीं कुछ भी हमें
देखा है हमने जब से तुम्हें
हमें मिलता रहे अहसास यूँही
खूं बन के मेरी रग में बहिये
इस दिल का धड़कना क्या कहिये

Friday, October 29, 2010

हादसा

यूँही मिल के कहीं खो जाते हैं वो
बन के प्यार हादसा हो जाते हैं वो

जो बुरा ही रहे भला न लगे
सपना बनके पले सच में न चले
छोड़ कर चैन से सो जाते हैं वो
बन के प्यार हादसा हो जाते हैं वो

खाईं कसमें झूठी सारे वादे तोड़े
मेरी मुश्किल में वो साथ मेरा छोड़े
आकर कब्र पे मेरी रो जाते हैं वो
बन के प्यार हादसा हो जाते हैं वो


रात भर की तड़प और दिन की बचैनी
अब तो संग मेरे उम्र भर मेरी रहनी
फिर पलटते नहीं जो जाते हैं वो
बन के प्यार हादसा हो जाते हैं वो

यूँही मिल के कहीं खो जाते हैं वो
बन के प्यार हादसा हो जाते हैं वो

Tuesday, October 26, 2010

चाँद आके मिला

मुझसे चाँद आके मिला कहने लगा और ये के
हैं तुम्हारे ही ये आंसू हैं जो तारे बनकर
अब शर्मिंदा हैं हम खुद पे ही ऐ यार मेरे
दे रहे दर्द ये कैसा हम तुम्हारे बनकर

भूलेंगे हम न कभी भी वो सुहानी सी घड़ी
जब तक तुम साथ थे साथ- साथ चल के मेरे
अब तो हर पल है यहाँ तन्हाई और अँधेरा
कल तक फिरे हम फिजां में बहारें बनकर

मुझको हैं क़ुबूल ये जो आसमां के तारे हैं
तेरी आँखें हैं या आकाश का पैमाना हैं
छलका नहीं एक भी तारा इन्तजार किया
हम नशे में भी साथ चलते किनारे बनकर

अब तो अहसास तेरा सांस के संग चलता है
अब तो खुशबू तेरी फैली है मेरी नस- नस में
तू भले दूर रहे साथ फिर भी रहता है
मेरे लिए सैकड़ों हजारों सहारे बनकर

Saturday, October 23, 2010

दोस्ती

मेरी चाहत से दोस्ती करके
क्या मिला ऐसी दिल्लगी करके

मेरी आँखों में जो आंसू हैं तो खुदा की कसम
आप रोयेंगे ये हंसी करके

हमने सोचा था खुश रहेंगे तुम्हें पाके मगर
रो रहे हैं ये आशिकी करके

तुमको समझा था खुदा तो हमें सजा ये मिली
टूटे पत्थर की बंदगी करके

तुमसे मिलने के पहले मरने की तमन्ना थी
पहली ख्वाहिश को आखिरी करके

बैठे इस आस में कि कोई तो दफ्न कर दे हमें
खत्म हम अपनी जिंदगी करके।

Friday, October 22, 2010

साये

मुझे तेरी मुहब्बत के साये अक्सर ही बहुत तड़पाते हैं
मैं भूलना चाहती हूँ जो पल मुझे भूल से वो याद आते हैं

कुछ धुंधली- धुंधली बात तेरी आंसू से भीगी रात मेरी
दोनों तेरी गली ले जाते हैं और तेरी महक ले आते हैं

जब आज भी पत्ते गिरते हैं मेरे दामन में उड़कर के
कभी फूल जो तुमने फेंके थे वो ही अहसास दिलाते हैं

आँखों से छुआ था तुमने मुझे हाथ नहीं थामा था मेरा
दर्द भरे नगमे तेरे लब के मुझे आज भी तर कर जाते हैं

बिखरे थे कभी जो साँसों में तेरी साँसों के शोले वो
मुझे जाने क्या हलचल दे गए हरदम मेरा मन जलाते हैं।

गिला

हैं तो हम तेरी पनाहों के तलबगार मगर
मुश्किलें और भी हैं बीच की दूरी के सिवा

तुमको मुझ तक भी नहीं लाता है और
मुझको भी रोकता है तुम तक जाने से खुदा

जब भी चाह कि मैं बढाऊँ कदम राह तेरी
दब के ही रह गई सीने में वो आह मेरी

कुछ तेरा गम है मुझे और थोड़ी ख़ामोशी
और कुछ हमको है किस्मत से भी गिला।

Thursday, October 21, 2010

शहर

इस शहर में लोग परेशां नज़र आते हैं
साथ इक हंसी की सौगात ले चलो

भाग दौड़ का है आलम इस तरह के
बस पल दो पल की मुलाक़ात ले चलो

उलझे हुए हैं शख्स जाने किस दयार में
जहाँ की हर ख़ुशी के आलमात ले चलो

शायद किसी के रहने को हो दीवार चार
उसके लिए सारी कायनात ले चलो

शायद कहीं धोखा है मक्कार भी कोइ
इसलिए शतरंज की बिसात ले चलो

पर मासूम कौन- कौन मक्कार है
दिल में ये पहचान बाएहतियात ले चलो

शायद कहीं सितम है कहीं दर्द है चहरे पर
तुम हर किसी के दर्द की निजात ले चलो

गर कर सको ऐसा तो कदम धरो यहाँ
वरना इस शहर की बस याद ले चलो।

Tuesday, October 19, 2010

अदा

मुझे हो रहा है नशा जानेमन
है कैसी तुम्हारी अदा जानेमन

बचता मैं कैसे ख्यालों से तेरे
डूबा है जिनमें खुदा जानेमन

सिर्फ मैं ही नहीं एक दीवाना तेरा
जमाना है तुझपे फ़िदा जानेमन

दिल में उतर जायेंगे हम तेरे
पलकें तो अपनी उठा जानेमन

बस नज़र ही नहीं रग - रग में मेरी
शामिल है तेरा निशां जानेमन।

ख्वाब

लब की हर बात में तेरी चाहत का नशा
मुझको तो हो गया है इस मुहब्बत का नशा

जाने कैसे हुए हर कदम हम रुसवा
लगता है ये है तेरी एक सोहबत का नशा

जिंदगी कुछ न थी बिन तेरे तुम मिले
मुझको तो मिल गया जैसे जन्नत का नशा

साँसें कहती रहीं मेरी धड़कन तुम हो
हो रहा था हमें कैसी राहत का नशा

पर था वो ख्वाब सब मैंने देखे थे जो
आज भी है मुझे तेरी हसरत का नशा

भीड़ में रह के भी हम तो तनहा रहे
तनहा रह के भी तुम क्या जानो फुरकत का नशा

Sunday, October 17, 2010

ख्वाहिश 2

लग कर गले तुम्हारे मैं रो लूँ ये ख्वाहिश है
वरना तो मेरी जिंदगी खुशियों की कब्र है

पाया तुम्हें रूबरू पर कह सका कुछ
तुम्हें देखा इक झलक यही दिल को सब्र है

मुहब्बत का किया सजदा खुदा को भूल कर
लोगों ने कहा मुझको ये शख्स काफ़िर है

तेरी वफ़ा में ही तो ये इल्जाम ओढ़े हैं
तुम ही क्यों कह रहे हो ये मेरा कफ़न है

चाहत कभी जो थी वो आज मर गई
अब तो मेरे अहसास कहीं गहरे दफ्न हैं

मैंने तुम्हें बनाया अंजामे जिंदगी
तुम आके देख लो क्या मेरा हश्र है

ख्वाहिश

लगूं मैं तुम्हारे सीने से
दिल मेरा बेक़रार हो जाये

अब तक होंठों ने जो कहा नहीं कुछ
आज होंठों की हार हो जाये

खुद से मेरा भरोसा टूटे तो
तुमपे बस ऐतबार हो जाये

रातें मेरी हों रातों की रानी
दिन हर मेरा बहार हो जाए

तुम से मिलने की एक ही ख्वाहिश
तुमसे मिलकर हजार हो जाए

यूँ लगूं मैं तुम्हारे सीने से
दिल मेरा बेक़रार हो जाये।

Friday, October 8, 2010

कृष्ण कहाना चाहता हूँ

मैं खँडहर में इक हंसी बसाना चाहता हूँ
जा रहा जो दूर उसको आज मैं
अपनी ख़ामोशी सुनाना चाहता हूँ
मैं खँडहर में इक हंसी बसाना चाहता हूँ
गम में रोते बीते हैं कितने बरस गिनता रहा
एक पल पागल की तरह खिलखिलाना चाहता हूँ
आज इस संसार में सरे सुदामा ही तो हैं
सबके थके पांव पर दृग जल चढ़ाना चाहता हूँ
दे सकूँ इक हंसी किसी होंठ पर तो मैं सदा
सामने वाले के दो आंसू चुराना चाहता हूँ
हाँ बहुत मुश्किल है एक ईंट बननी प्रेम की
हर सुख दुःख की आग में उसको तपाना चाहता हूँ
माँ न छूटे बच्चों से फिर बँट न जाए कोई घर
प्रेम की इंटों से रिश्तों को बनाना चाहता हूँ
प्रेम का इक सूत जो बांधे समस्त इंसानों को
द्रौपदी के चीर सा उसको बढ़ाना चाहता हूँ
जो हैं अंधे हो रहे नफ़रत के तूफानों में बह
उन्हें प्रेम के बल टिका इक तिनका दिखाना चाहता हूँ
न रहे कोई प्रतिस्पर्धा न रहे कोई दुश्मनी
सबके मन से भेदभाव मैं मिटाना चाहता हूँ
ज्वाला न भड़के नफरतों की जल न जाए फिर जहाँ
ईर्ष्या की चिंगारी को मैं दबाना चाहता हूँ
आज के अँधेरे से कल के उजाले अच्छे थे
फूंक कर सूरज की मैं गर्मी बुझाना चाहता हूँ
या तो सोते ही रहें सब लोग अँधेरा रहे
या तो मैं सद्भावना दीपक जलाना चाहता हूँ
ताजे फूल दोस्ती के बिखर जाते पल ही में
गुलाब का इक फूल किताबों में सुखाना चाहता हूँ
आज है हिंसा यहाँ विनाश के कगार तक
मैं विश्व में बधुत्व का बंधन बंधाना चाहता हूँ
दूर इतने जा बसे कि फिर न मुझ तक लौट आये
दर्द दवा की डोर में पतंग सा उड़ाना चाहता हूँ
लोग वादे करके मुकर जाते हैं इस दौर में
मैं बिना किये ही हर वादा निभाना चाहता हूँ
एक दिल में घर नहीं मैं चाहता अमीर होना
सब के दिल में अपने लिए इक घराना चाहता हूँ
जुल्म के खिलाफ हर आवाज़ हो बुलंद अतः
कमजोर से हर मन से मैं डर भगाना चाहता हूँ
गर मेरे सा कृष्ण युद्ध में न उतरे आज तो
अर्जुन को गीता के दरिया में बहाना चाहता हूँ
वक्त रूठता है मुझसे घड़ी-घड़ी जाने क्यों
मैं तो हर वक्त ही उसको मनाना चाहता हूँ
कुछ अलग हो इससे आज जो फिजा है चल रही
पतझड़ के मौसम में मैं बहार लाना चाहता हूँ
इतना सब जब कर सकूँ तो बैठकर किसी छाँव में
सुख चैन की मैं वंशी बजाना चाहता हूँ
द्वापर के कृष्ण को जितना भी सुना है मैंने
अब भले कलयुग का पर कृष्ण कहाना चाहता हूँ।

रात भर

नज़रों से तमाम अश्क गिराए हैं रात भर
तुम्हें याद करके जख्म जगाये हैं रात भर

तुम ख्याल में मेरे थे या के दूर कहीं थे
तुम्हें दूर जान लब ये बुलाये हैं रात भर

मेरे दर्द मुझे ढूंढें उजालों में पनप कर
मैंने चराग फूंक बुझाये हैं रात भर

तन्हाईयाँ हैं साथी अश्कों से सजी महफ़िल
सब यार मैंने दूर भगाए हैं रात भर

सुबह का साथ मेरा अब दिल लुभाएगा
नज़रों से ख़ाब चाँद ने चुराए हैं रात भर
तुम्हें याद करके जख्म जगाये हैं रात भर

Tuesday, October 5, 2010

इक बात है आती दिल में

इतना आसान नहीं है सबकुछ
फिर भी इक बात है आती दिल में
काश अम्बर को भी हम छू पाते
काश होता वो मेरी मंजिल में

इतना आसान नहीं है सबकुछ
फिर भी इक बात है आती दिल में
काश सागर की लहरें गिन पाते
काश होतीं वो मेरे साहिल में

इतना आसान नहीं है सबकुछ
फिर भी इक बात है आती दिल में
काश इस चाँद से हम मिल पाते
काश आता वो मेरी महफ़िल में

इतना आसान नहीं है सबकुछ
फिर भी इक बात है आती दिल में
काश हम होते इतने दिलवाले
काश हम रहते होते हर दिल में

इतना आसान नहीं है सबकुछ
फिर भी इक बात है आती दिल में

तमन्ना

मेरी मुद्दतों के बाद ये तमन्ना है
तेरी ख्वाहिश में इस दिल को बेकरार करूँ

मेरी रातों को भले रौशनी नसीब न हो
तेरी रातों में उजालों की मैं भरमार करूँ

मेरी चाहत में भले हो कमी चाहत है पर
तुझसे इक बार इस चाहत का मैं इजहार करूँ

कभी दिया नहीं मैंने अपना तवार्रुफ़ लेकिन
ख्याल है दिल का कि तेरे लिए अशआर करूँ

तू कहे चाँद सितारे भी मुझसे लाने को
मेरी क्या हैसियत कि तुझसे मैं इनकार करूँ

शाम आये चाहे न रात आये गम ही नहीं
हर सुबह पर नज़र खोलूं तेरा दीदार करूँ।

तमन्ना

Monday, October 4, 2010

तेरी याद

शायद मुझे सूखे हुए गुलाब मिल जाएँ
तेरी याद के पन्नों को टटोला है मैंने
वर्षों से बंद किया दिल के खँडहर का
धीमे से इक कपाट खोला है मैंने
शायद कहीं कुछ लफ्ज़ लरजते हुए मिल जाएँ
आँखों में फिर पुराना खाब घोला है मैंने
शायद थरथराती मिलें तेरी उंगलियाँ
तेरी याद के पन्नों को टटोला है मैंने
शायद मुझे सूखे हुए गुलाब मिल जाएँ

Saturday, October 2, 2010

शमा

हम रात भर जो जला करें वो शमा नहीं बुझ जायेंगे
मुझे देख पिघलता सब ही की आँखों में आंसू आयेंगे
हम रात भर जो जला करें

हमें प्यार जो करते रहे परवाने छू हमें जल गए
हम ऐसे पत्थरदिल नहीं ये दर्द जो सह जायेंगे
हम रात भर जो जला करें

मेरे पास गम हैं और भी रोते रहेंगे रात भर
आंसू बहायेंगे कहीं हम खुद ही में घुल जायेंगे
हम रात भर जो जला करें

तेरी सहर जब आएगी हमें फूंक देना शौक से
हम भी बड़े ही शौक से हंसकर फ़ना हो जायेंगे
हम रात भर जो जला करें वो शमा नहीं बुझ जायेंगे

रहते हैं कहीं हम

रहते हैं कहीं हम आँखों में
छुपते हैं कभी हम साँसों में
रहते हैं कहीं हम आँखों में

तुम सामने होते हो जिस दम
होते हैं हसीं हम लाखों में
रहते हैं कहीं हम आँखों में

हम हो जाते हैं फ़िदा तुमपे
जब हैं होते तुम्हारी बातों में
रहते हैं कहीं हम आँखों में

हम बेल हैं तुम मेरा हो वो सहारा
जिन्हें ढूँढते हैं हम शाखों में
रहते हैं कहीं हम आँखों में

तुम हमको छोड़ना भी न कभी
के बदल जायेंगे हम राखों में
रहते हैं कहीं हम आँखों में

कमी

कैसे मैं कहूँ कि क्या कमी है मेरे पास
तुम जो नहीं हो तो मेरी रातें हैं उदास
कैसे मैं कहूँ कि क्या कमी है मेरे पास

शाम से अँधेरा तड़पते हुए आया
दिन की सिसकियाँ भी लग रहीं थीं आज ख़ास
कैसे मैं कहूँ कि क्या कमी है मेरे पास

सुबह रो रही थी पत्तों पे बूंद- बूंद
चाँद भी भटका था कहीं मेरे आस पास
कैसे मैं कहूँ कि क्या कमी है मेरे पास

बीतते हैं वक़्त यूँही दायरे में ऐसे
कदमों के नीचे जैसे पिस रहा पलाश
कैसे मैं कहूँ कि क्या कमी है मेरे पास

अब तो इंतज़ार है नज़रों के तुम आना
और आ ही जाना हो नहीं मेरा महज कयास
कैसे मैं कहूँ कि क्या कमी है मेरे पास

Wednesday, September 29, 2010

जीवन

ज्यों जलाती रही चाँदनी रात भर
ऐसी पत्तों पे शम्मा घुली थी सुबह
तुम भी रोये हो हमको पता है ये सब
शम्मा बरसी नहीं रात भर इस तरह
ये तुम्हारे हैं आंसू कहाँ मैं समेटूं
नहीं मेरे आँचल की इतनी गिरह
ऐसा बिखरा है सब कुछ मेरे आंगने
जैसे जीवन न हो न हो तुम जिस जगह।

Tuesday, September 28, 2010

ग़ज़ल

धूप चलती रहे उन हवा के ही संग
फिर क्या हो गरम क्या हो गुनगुना।
तुम चलाते हो क्या लफ़्ज़ों के तीर कुछ
हमने तो अब तलक सब ही ठण्डा सुना।
शायद कुछ गलतियाँ हो गईं तुमसे जो
तुमने बोये बबूल हमने आम ही चुना।
तुमजो आते तो हम भी दिखाते पलट
चाँद रातों को क्या- क्या था सपना बुना।
कुछ है बाकी बहुत कुछ तो जोड़ा मगर
कुछ भगाए कुछों का किया गुना।
जो पकाया था रस उसके चटखारे ले
तुम तो ठण्डे हुए ये कलेजा भुना

Monday, September 27, 2010

अहसास

तेरे अहसास समझ लूं मैं, मुझको ऐसा अहसास मिले
नज़रों से दूर रहे तब भी, मुझे दिल के हरदम पास मिले
तेरे अहसास समझ लूं मैं

तेरे दर्द पे हर मेरी आहें हों, तेरे दिल के लिए मेरी राहें हों
कांटे न चुभें तेरे कदमों में ,तेरे कदमों तले मेरी बाहें हों
तेरा स्पर्श मिले मुझको, जब भी कोइ आभास मिले
नज़रों से दूर रहे तब भी, मुझे दिल के हरदम पास मिले
तेरे अहसास समझ लूं मैं

तेरे आंसू मेरी आँखों में हों, मेरी धड़कन तेरी साँसों में हो
किसी भी राह चलूँ मैं कहीं, तू मेरी हर राहों में हो
तू छुप के कभी देख लेना मुझे, तेरे बिन मेरी अखियाँ उदास मिले
नज़रों से दूर रहे तब भी, मुझे दिल के हरदम पास मिले
तेरे अहसास समझ लूं मैं

तेरी तड़प बसे मेरे सीने में, तो मज़ा मिले मुझे जीने में
कुछ रात तेरी यादों में जगकर, डूब जाऊं अश्क पीने में
कदमों में तेरे जमीं हो मेरी, बाहों में तेरी आकाश मिले
नज़रों से दूर रहे तब भी, मुझे दिल के हरदम पास मिले
तेरे अहसास समझ लूं मैं

तेरी हसीं पे मैं कुर्बान होऊं, तू सिसके तो मैं ऐ जान रोऊँ
इक तुझको पाकर रब पालूं, फिर चाहे सारा जहाँ खोऊँ
चाहे मेरे चमन से बहार जाए, मुझे तेरे निकट मधुमास मिले
नज़रों से दूर रहे तब भी, मुझे दिल के हरदम पास मिले
तेरे अहसास समझ लूं मैं

तू उदास होए तो खुशियाँ लाऊं, इक तेरी खातिर कुछ कर जाऊं
और तू न हो मेरे पास अगर, तेरे बिना मैं मर जाऊं
हो जीवन ये मेरा तेरे लिए, मुझे और न कोइ काश मिले
नज़रों से दूर रहे तब भी, मुझे दिल के हरदम पास मिले
तेरे अहसास समझ लूं मैं

Saturday, September 25, 2010

मेरा गम मुझे अज़ीज़ है कुछ दिल के तो करीब है
मेरी आँख में आंसू रहें उम्र भर ये नसीब है
मेरा गम मुझे अज़ीज़ है

कुछ लब सिसकते भी रहें कुछ आँख भीगी भी रहे
क्यों करूं ये ख्वाहिश मेरा गम इक रात पीती भी रहे
मेरे साथ कुछ तो है यहाँ ये बात क्यों अजीब है
मेरा गम मुझे अज़ीज़ है

मेरे आँख कि ये गौहरें हर गौहरों में तू रहे
सब चाहे मेरे चमन से जाए इनमें तेरी खुशबू रहे
मैं हर गौहर समेटती हूँ कोइ क्यों कहे गरीब है
मेरा गम मुझे अज़ीज़ है

मर जाऊंगी तेरी राह में आँखें बिछा कर तू न आ
देखा नहीं होगा किसी ने इस तरह तेरा रास्ता

दिल में रहे तू न दिखे तो नज़र ही बदनसीब है
मेरा गम मुझे अज़ीज़ है

मेरा गम मुझे अज़ीज़ है कुछ दिल के तो करीब है
मेरी आँख में आंसू रहें उम्र भर ये नसीब है

Friday, September 24, 2010

कैफ-ए-दिल

कैफ-ए-दिल क्या बयां करूं तुमसे
तुमको पाने की कितनी ख्वाहिश है
कैफ-ए-दिल क्या बयां करूं तुमसे

ले जाएँ मेरी सदायें तुम तक
इन हवाओं से ये गुजारिश है
कैफ-ए-दिल क्या बयां करूं तुमसे

अब मेरे अश्क यूं बरसते हैं
मुझसे सहमी हुई तो बारिश है
कैफ-ए-दिल क्या बयां करूं तुमसे

तुमने छोड़ा तो ऐसा हाल हुआ
मेहरबान आज मुझपे गर्दिश है
कैफ-ए-दिल क्या बयां करूं तुमसे

तुम मेरे साथ नहीं तो ये आईने कहते
मुझमें जो शख्स है वो मुफलिस है
कैफ-ए-दिल क्या बयां करूं तुमसे

कैफ-ए-दिल क्या बयां करूं तुमसे
तुमको पाने की कितनी ख्वाहिश है
कैफ-ए-दिल क्या बयां करूं तुमसे

Wednesday, September 8, 2010

विरही की गाथा

जीवन में निविड़ सा एकाकीपन
खलता है उस पथ जहाँ प्रिये
तुम छोड़ गई हो साथ मेरा
अब छूटा हुआ है हाथ मेरा

तुम तारकदल के साथ चली
तो मुझे भी दे गई निशा भली
मैं तुमको ढूंढूं आसमान में
तुम मुझे ढूंढ नहीं सकती
पर मुझे रजनी भली लगती
क्योंकि ये दिवा तुम बिन तपती

जो साक्ष्य बनी थी अग्नि कभी
मेरी तुम्हारी सप्तपदी की
वो अब भी साक्ष्य स्वयं ही है
जो मुझे जलाती रहती है
जब जल- जल कर जब तप- तप कर
मैं भी रह जाऊंगा रज कण
तब तुमसे मिलने आऊँगा
तुम मेरी प्रतीक्षा वहीँ करना
जहां गई छोड़ कर साथ मेरा
जब आऊँ पकड़ना हाथ मेरा

जीवन में निविड़ सा एकाकीपन
खलता है उस पथ जहाँ प्रिये
तुम छोड़ गई हो साथ मेरा
अब छूटा हुआ है हाथ मेरा

सच

सच तो है मृत्यु भी सच तो है जीवन भी
सच तो है राम भी सच तो है किशन भी
अपनी अपनी श्रद्धा है कृष्ण को माने या राम को
जाना तो सबको ही है मौत के ही धाम को

Tuesday, September 7, 2010

गरीब

सब अपने- अपने चहरे हैं,
सब जाने हैं, पहचाने हैं
किसने छीना किसने खाया
इस से सब ही अनजाने हैं
क्या किस्मत है क्या नियति है
सब जग का गोरख धंधा है
नेताओं के हमाम में
बस 'आम' है जो नंगा है

Monday, September 6, 2010

इन नयनों से

इन नयनों से तुम नेह निमंत्रण मत पहुँचाओ
देख रही है दुनिया हमको प्रेम छिपाओ
इन नयनों से

मुझे बुलाने से पहले तुम निशा निमंत्रित तो कर लो
सूनी रजनी का शोर जरा आँखों में भर लो
देने को उपहार हमें कुछ मोती तो छलकाओ
इन नयनों से

नित्य बुलाना नित आऊँगी छत पर मिलने
मौन रहो तुम ज़रा अभी दो सूरज ढलने
दे स्पर्श मुझे अभी तुम मत भरमाओ
इन नयनों से

मधुर निशा की मधुर चाँदनी मधुरामृत भरा मन
ही लाओगे होता जबकि विष सा जीवन
संगम का नहीं जल सागर का भर लाओ
इन नयनों से

सत्य

जो तुमसे अजब सा नाता है
सबसे ये कहाँ निभ पाता है
जो तुमसे अजब सा नाता है

हम जलते- जलते रहते हैं
जब भी इसमें कोइ आता है
जो तुमसे अजब सा नाता है

तुम जान भले लो जुदा मत होना
हर दर्द सहा नहीं जाता है
जो तुमसे अजब सा नाता है

जो तुमसे अजब सा नाता है
सबसे ये कहाँ निभ पाता है
जो तुमसे अजब सा नाता है

हालात

अब हो गए हैं मेरे हालात कैसे- कैसे
तुमसे मिलकर हुए हैं जज्बात कैसे- कैसे

जिस रात तुम्हें देखा मेरा चाँद हुआ रौशन
मैंने गुजारी है वो अपनी रात कैसे- कैसे

फूलों ने कहा तुमसे मैं खुश्बू हूँ तुम्हारी
तुम तक पहुँच रही है मेरी बात कैसे- कैसे

मैं देखूं जहाँ तक भी मुझे तुम नज़र आते हो
मेरी तुमसे हो रही है मुलाक़ात कैसे- कैसे

तेरी आँखें मुझे ढूंढें, तेरे लब पुकारते हैं
मेरे दिल पे पड़े तेरे निशानात कैसे- कैसे
अब हो गए हैं मेरे हालात कैसे- कैसे
तुमसे मिलकर हुए हैं जज्बात कैसे- कैसे

Friday, September 3, 2010

कोई

कोई तो है जो निगाहों काम लेता है
सहर के बुझते चरागों से काम लेता है
मेरी गिरती हुई पलकों के सहारे के लिए
मेरी पलकें अपनी पलकों से थाम लेता है
मैं जहां भी रहूँ मुझको बुलाने के लिए
किसी बहाने से रब का वो नाम लेता है
कोई तो है जो निगाहों काम लेता है

Monday, August 30, 2010

चाँद अभी सो रहा है

मेरी मुद्दतों के बाद ये तमन्ना है
तेरी ख्वाहिश में इस दिल को बेकरार करूँ
मेरी रातों को भले रोशनी नसीब न हो
तुम्हारी रातों में उजालों कि मैं भरमार करूँ
मेरी चाहत में भले हो कमी चाहत है पर
तुझसे एकबार इस चाहत का मैं इजहार करूँ
कभी दिया नहीं मैंने अपना तवार्रुफ़ लेकिन
ख्यालहै दिल का कि तेरे लिए अशआर करूँ
तू कहे चाँद सितारे भी मुझसे लाने
मेरी क्या हैसियत कि तुझसे मैं इन्कार करूँ
शाम आये चाहे न रात आये गम ही नहीं
हर सुबह पर नज़र खोलूं तेरा दीदार करूँ
मेरी मुद्दतों के बाद ये तमन्ना है

Tuesday, August 17, 2010

सत्ता

है निश्चय ये कि प्राण बनाने वाली
पंछियों के गान बनाने वाली
अद्भुत अदृश्य कोइ सत्ता है
जो चला रही है सृष्टि को इस।

पुष्पों के हर रंग बनाने वाली
दुनिया की हरियाली और नीलिमा आकाश की
गहरे सागर में जीव जिलाने वाली
हर पल के हर कर्म कराने वाली
अद्भुत अदृश्य कोइ सत्ता है
जो चला रही है सृष्टि को इस


रंगीन बहारें महकाने वाली
नीचे से ऊपर जाने और ऊपर से नीचे आने को
मंद स्वरों में हमें बुलाने वाली
इतना बड़ा इक भार उठाने वाली
अद्भुत अदृश्य कोइ सत्ता है
जो चला रही है सृष्टि को इस

Friday, August 13, 2010

दिल चाहता है

निगाहें मिलाने को दिल चाहता है
घड़ी दो घड़ी पास आने की चाहत
कि तुमको सताने को दिल चाहता है
निगाहें मिलाने को दिल चाहता है

नाजुक हो तुम बूँद से भी जियादा
बादल मैं बनकर सम्हालूँगा तुमको
आवारगी पर नज़र न करो
बिखरने से मैं बचा लूँगा तुमको
फिर भी तुम्हें फूंक सागर की सीप
में भी गिराने को दिल चाहता है
निगाहें मिलाने को दिल चाहता है

सनम खूबसूरत कहीं तुम ख्यालों से
तुम पर करें शायरी हैं इरादे
ऐसा तरन्नुम बनाएं तुम्हें
आशिक तुम्हारे हैं हम सीधे सादे
एक नज़र हम पे डालो ज़रा कि
तुम्हारे निशाने को दिल चाहता है
निगाहें मिलाने को दिल चाहता है

परी कोइ ऐसी नज़र में न होगी
जैसा बनाया खुदा ने तुम्हें
सारे जहां की नैमत है बख्शी
उसने तुम्हें अदा कर हमें
कि अब कुछ न मांगूं तुम्हें मांगकर
दिल से लगाने को दिल चाहता है
निगाहें मिलाने को दिल चाहता है

सहारा मिला आज ऐसा हमें
बाहों में तुम लेकर चले
अभी तक अकेले भटकते रहे
आज एक से तुम-हम दो भले
दिल तो मेरा गया खो है तुम्हें पर
नज़र में छुपाने को दिल चाहता है
निगाहें मिलाने को दिल चाहता है

निगाहें मिलाने को दिल चाहता है
घड़ी दो घड़ी पास आने की चाहत
कि तुमको सताने को दिल चाहता है
निगाहें मिलाने को दिल चाहता है।

Tuesday, August 10, 2010

खोया बचपन

ढूंढ लाओ कहीं से बचपन मेरा
बचपन में देखा हर सपन मेरा
भुला दूं जवानी की मैं कहानी
वो सुबह की लाली ये शाम सुहानी
मुझे चाहिए बस कहानी सुनाती
मेवे खिलाती वो बुढिया सी नानी
पोपले मुह से जब हंसती खिलखिलाती
प्यार की गंगा सबके दिलों में बहाती
उसने सुनी अपनी नानी से जो
याद करके बताती वो बातें पुरानी
भुला दूं जवानी की मैं कहानी
वो सुबह की लाली ये शाम सुहानी
मेरा बचपन मुझे जो मिल जाए तो
बुढिया नानी को जीवन ये अर्पण मेरा
ढूंढ लाओ कहीं से बचपन मेरा


सावन का पानी जो बरसता दिलों पे
मुस्कराहट छा जाती चेहरे पर फूलों के
हरियाली छा जाती चहु ओर सबके
बैल जुत जाते खेतों में जाकर हलों पे
कागज़ की नावें तैरती हर जगह
ताल तलैया में हर सुबह
मुस्कुराते वो साथी प्यारे- प्यारे से बच्चे
भेद होता नहीं था किसी के दिलों में
सावन का पानी जो बरसता दिलों पे
मुस्कराहट छा जाती चेहरे पर फूलों के
भेद भाव से रहित मुस्कुराता भोला भाला
भूल जाऊं मैं कैसे बचपन मेरा
ढूंढ लाओ कहीं से बचपन मेरा


आज इस मोड़ पर जिन्दगी के कभी
जो याद आ जाते बचपन के साथी सभी
आँखें हो जातीं नम दिल यही चाहता बस
बिछड़े साथी मेरे मिल जाएँ मुझको अभी
अब कहीं गर कोई मिल भी जाते जो तो
पहचानते नहीं यूंही गुजर जाते वो तो
भेद कैसा हुआ ये दिलों में सभी
परिचय देना है पड़ता मिलते हैं वो जभी
आज इस मोड़ पर जिन्दगी के कभी
जो याद आ जाते बचपन के साथी सभी
देता ही नहीं पहचान वो पुरानी
भूल गया मेरा अक्स ये भी दर्पण मेरा
ढूंढ लाओ कहीं से बचपन मेरा

Friday, July 30, 2010

मृत्यु के मस्तक पे चढ़ जीवन का हम विश्वास हैं,
कष्ट दुःख की भीड़ में भी मानव का हम उल्लास हैं,
वास हमारा हर ह्रदय हर ह्रदय का हम प्रतिवास हैं,
जो रचाया कृष्ण ने हम वही महारास हैं,
कहते हैं मधुमाह जिसको उस बसंत की शान हैं,
निदान हैं नफरत का हम और प्रेम की पहचान हैं,
ये धरा है गर्व हमारा हम धरा का मान हैं,
हम सुमन हैं बाग़ के ईश्वर का हम वरदान हैं,
यद्यपि निश्चित है हमारा खिल करके मुरझाना,
खिलने से हमको रोकेगा क्या प्रलय का आना,
हवा के संग महक बनकर फिर चलेंगे हम,
हमको कोई मसल देगा तो फिर खिलेंगे हम।

Monday, July 26, 2010

आंसू

रास्तों पर हर तरफ सज रहे हैं मेरे आंसू ,
बूँद बनकर पत्ता पत्ता बस रहे हैं मेरे आंसू ,
रिश्तों के इन तानों बानों की समझ से दूर जाकर,
तन्हाई की जिन्दगी से उलझ रहे हैं मेरे आंसू,
होंठों की खामोशियों ने जब नहीं बख्शा इन्हें तो,
गालों की सुर्खी चुराकर गरज रहे हैं मेरे आंसू,
ख़त्म हो जाने का जैसे डर नहीं है अब यूँही,
मेरे दुपट्टे से टकरा कर बज रहे हैं मेरे आंसू।