बड़ा मुश्किल है सब सह पाना
जो दिल के दर्द हैं कह पाना
जब तेरे बिना मजबूर हों हम
दुनिया में कहीं भी रहने को
तब तेरे बिना रह पाना
बड़ा मुश्किल है सब सह पाना
जो बिखरी मेरे अश्कों से हो
दुनिया भर की पुरवाई में
तेरी यादों को दिल में तह पाना
बड़ा मुश्किल है सब सह पाना
Friday, August 19, 2011
Monday, August 8, 2011
आज़ादी
किस आज़ादी की बात करते हैं हम? आज़ाद देश कहाँ जा रहा है किसी को फिकर है? तकरीबन ग्यारहवीं शताब्दी से भारत गुलाम था जिस पर इंग्लिश शासन ने सोलहवीं शताब्दी में अपनी नज़र डाली और उन्नीसवीं सदी तक इसे पूरी तरह अपनी चपेट में ले लिया जिससे भारत को १५ अगस्त १९४७ को स्वतंत्रता भी मिल गई पर इस बीच कहाँ है नारी समाज जो आज भी स्वतंत्र है इसमें शक है। स्त्रियों को अपनी सोच के अनुसार न चलने देना, उनकी पढाई पर अभी भी परिवार वालों द्वारा रोक, बेटी को गर्भ में ही मार डालना और येन केन प्रकारेण यदि पैदा हो जाये तो पैदा होते ही उसे मार डालना, भाइयों से भेदभाव सहन करना अभी भी बहुत जगहों पर स्त्री जाति की मजबूरी है। अलग-अलग जगहों पर स्त्रियाँ अलग-अलग प्रकार से पुरुषों द्वारा और सच कहूँ तो स्त्रियों द्वारा भी शोषण का शिकार बनती हैं। स्त्रियों का खुद से बेहतर होना पुरुष वर्ग अपनी तौहीन मानता है जिसके लिए उन्हें किसी न किसी बहाने से नीचा दिखाने की कोशिश करता है यह न तो एक स्वस्थ मानसिकता है न ही स्वतंत्र। फिर भी भारत आज़ाद है तो बधाई है इस आज़ादी की। जिस आज़ादी के लिए स्त्रियों ने भी पुरुषों के कंधे से कन्धा मिलाया भले उनकी संख्या कम रही हो बधाई है इस आज़ादी की।
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