Monday, August 30, 2010

चाँद अभी सो रहा है

मेरी मुद्दतों के बाद ये तमन्ना है
तेरी ख्वाहिश में इस दिल को बेकरार करूँ
मेरी रातों को भले रोशनी नसीब न हो
तुम्हारी रातों में उजालों कि मैं भरमार करूँ
मेरी चाहत में भले हो कमी चाहत है पर
तुझसे एकबार इस चाहत का मैं इजहार करूँ
कभी दिया नहीं मैंने अपना तवार्रुफ़ लेकिन
ख्यालहै दिल का कि तेरे लिए अशआर करूँ
तू कहे चाँद सितारे भी मुझसे लाने
मेरी क्या हैसियत कि तुझसे मैं इन्कार करूँ
शाम आये चाहे न रात आये गम ही नहीं
हर सुबह पर नज़र खोलूं तेरा दीदार करूँ
मेरी मुद्दतों के बाद ये तमन्ना है

Tuesday, August 17, 2010

सत्ता

है निश्चय ये कि प्राण बनाने वाली
पंछियों के गान बनाने वाली
अद्भुत अदृश्य कोइ सत्ता है
जो चला रही है सृष्टि को इस।

पुष्पों के हर रंग बनाने वाली
दुनिया की हरियाली और नीलिमा आकाश की
गहरे सागर में जीव जिलाने वाली
हर पल के हर कर्म कराने वाली
अद्भुत अदृश्य कोइ सत्ता है
जो चला रही है सृष्टि को इस


रंगीन बहारें महकाने वाली
नीचे से ऊपर जाने और ऊपर से नीचे आने को
मंद स्वरों में हमें बुलाने वाली
इतना बड़ा इक भार उठाने वाली
अद्भुत अदृश्य कोइ सत्ता है
जो चला रही है सृष्टि को इस

Friday, August 13, 2010

दिल चाहता है

निगाहें मिलाने को दिल चाहता है
घड़ी दो घड़ी पास आने की चाहत
कि तुमको सताने को दिल चाहता है
निगाहें मिलाने को दिल चाहता है

नाजुक हो तुम बूँद से भी जियादा
बादल मैं बनकर सम्हालूँगा तुमको
आवारगी पर नज़र न करो
बिखरने से मैं बचा लूँगा तुमको
फिर भी तुम्हें फूंक सागर की सीप
में भी गिराने को दिल चाहता है
निगाहें मिलाने को दिल चाहता है

सनम खूबसूरत कहीं तुम ख्यालों से
तुम पर करें शायरी हैं इरादे
ऐसा तरन्नुम बनाएं तुम्हें
आशिक तुम्हारे हैं हम सीधे सादे
एक नज़र हम पे डालो ज़रा कि
तुम्हारे निशाने को दिल चाहता है
निगाहें मिलाने को दिल चाहता है

परी कोइ ऐसी नज़र में न होगी
जैसा बनाया खुदा ने तुम्हें
सारे जहां की नैमत है बख्शी
उसने तुम्हें अदा कर हमें
कि अब कुछ न मांगूं तुम्हें मांगकर
दिल से लगाने को दिल चाहता है
निगाहें मिलाने को दिल चाहता है

सहारा मिला आज ऐसा हमें
बाहों में तुम लेकर चले
अभी तक अकेले भटकते रहे
आज एक से तुम-हम दो भले
दिल तो मेरा गया खो है तुम्हें पर
नज़र में छुपाने को दिल चाहता है
निगाहें मिलाने को दिल चाहता है

निगाहें मिलाने को दिल चाहता है
घड़ी दो घड़ी पास आने की चाहत
कि तुमको सताने को दिल चाहता है
निगाहें मिलाने को दिल चाहता है।

Tuesday, August 10, 2010

खोया बचपन

ढूंढ लाओ कहीं से बचपन मेरा
बचपन में देखा हर सपन मेरा
भुला दूं जवानी की मैं कहानी
वो सुबह की लाली ये शाम सुहानी
मुझे चाहिए बस कहानी सुनाती
मेवे खिलाती वो बुढिया सी नानी
पोपले मुह से जब हंसती खिलखिलाती
प्यार की गंगा सबके दिलों में बहाती
उसने सुनी अपनी नानी से जो
याद करके बताती वो बातें पुरानी
भुला दूं जवानी की मैं कहानी
वो सुबह की लाली ये शाम सुहानी
मेरा बचपन मुझे जो मिल जाए तो
बुढिया नानी को जीवन ये अर्पण मेरा
ढूंढ लाओ कहीं से बचपन मेरा


सावन का पानी जो बरसता दिलों पे
मुस्कराहट छा जाती चेहरे पर फूलों के
हरियाली छा जाती चहु ओर सबके
बैल जुत जाते खेतों में जाकर हलों पे
कागज़ की नावें तैरती हर जगह
ताल तलैया में हर सुबह
मुस्कुराते वो साथी प्यारे- प्यारे से बच्चे
भेद होता नहीं था किसी के दिलों में
सावन का पानी जो बरसता दिलों पे
मुस्कराहट छा जाती चेहरे पर फूलों के
भेद भाव से रहित मुस्कुराता भोला भाला
भूल जाऊं मैं कैसे बचपन मेरा
ढूंढ लाओ कहीं से बचपन मेरा


आज इस मोड़ पर जिन्दगी के कभी
जो याद आ जाते बचपन के साथी सभी
आँखें हो जातीं नम दिल यही चाहता बस
बिछड़े साथी मेरे मिल जाएँ मुझको अभी
अब कहीं गर कोई मिल भी जाते जो तो
पहचानते नहीं यूंही गुजर जाते वो तो
भेद कैसा हुआ ये दिलों में सभी
परिचय देना है पड़ता मिलते हैं वो जभी
आज इस मोड़ पर जिन्दगी के कभी
जो याद आ जाते बचपन के साथी सभी
देता ही नहीं पहचान वो पुरानी
भूल गया मेरा अक्स ये भी दर्पण मेरा
ढूंढ लाओ कहीं से बचपन मेरा