१- रंग खुलतेहैं रंग खिलते हैं
होली के दिन सब गले मिलते हैं
बात रंगों की साथ रंगों का
ऐसे ही सबके दौर चलते हैं।
२- मुस्कुरा के थोड़ा छलकाइये तो रंग
इस हंसी राह पर आइये तो संग
फूल भी खिले हैं फुहार भी मची है
ऐसी कहीं होगी और कहाँ तरंग।
३- बात रंगों की इस होली पर
भूल जाने दो मन के सारे डर
डूब जाने दो अब तो रंगों में
डूबो तुम भी मेरे संग आकर।
४- नीले पीले लाल गुलाबी रंगों का मौसम
रहे संग तो कितना अच्छा हो जीवन हरम
इन रंगों की बात चले तो बस इनमें रंग जाओ
हम भी खूब उड़ायें गुलाल तुम भी खूब उड़ाओ।
५- उड़ कर आई है फुहार अब तो लगा लो गले
एक कहाँ आज के दिन तो दो तीन भले
इतना सजा दो रंगों को खिल- खिल खुल- खुल बिखरें
तब-तब उड़-उड़ गिरते रहें जब-जब हवा चले।
६- रंगों की खुशियाँ रंगों का मौसम
रंगों सा बदले जीवन ये हरदम
फिर भी रंग हो हरपल रंगों से
आये या जाए कितने भी सावन।
७- रंग भरी निशा-निशा
खिल उठी है दिशा-दिशा
रंगों का शोर मचा
बही पवन तेज़ आहिस्ता।
८- रात रंगों की दिन हो रंगोंका
सुबह मुस्काये शाम शरमाये
इतने रगों में क्या मैं कैसे चुनूँ
कोइ तो इतना हमसे कह जाए।
९- रंगों से फिजा महकी-महकी जाती है
जब भी आती है रंगों की बात आती है
महके-महके से गुलाल उड़ते हैं बिखरते हैं
बात मौसम की ये अनाम जान जाती है।
१०-गुझिया मीठी मुस्कान सी पापड़ खिलखिलाते
और मिठाई मन हर लेती दही बड़े बहलाते
हर मन बिक जाने को तत्पर प्रेमभाव की बोली में
रंगों की इस होली में
आप सभी को होली की शुभकामनाएं
Thursday, March 17, 2011
Tuesday, March 15, 2011
मेरी रूह
तेरी गर्म सांस का आलम मेरी रूह पिघलती जाए
बेकार बहारी मौसम मेरी रूह पिघलती जाए
हूँ दूर मैं तब भी हालत दीवानों सी हुई
आकाश की ऊंचाई मेरे अरमानों ने छुई
बढ़- बढ़ फिर मद्धम- मद्धम मेरी रूह पिघलती जाए
बेकार बहारी मौसम मेरी रूह पिघलती जाए
मेरी सांस- सांस कहती है तेरी साँसों संग चलेगी
चाहे मैं कहीं भी रहूँ पर तेरे सीने ही में पलेगी
चाहे हो जहाँ भी तू हमदम मेरी रूह पिघलती जाए
बेकार बहारी मौसम मेरी रूह पिघलती जाए
इक बार कहा नज़रों ने तुझे देख- देख जी लेंगी
मर जाए ये जिस्म मगर रस तेरे चहरे का पियेंगी
तेरी सूरत मेरा मरहम मेरी रूह पिघलती जाए
बेकार बहारी मौसम मेरी रूह पिघलती जाए
बेकार बहारी मौसम मेरी रूह पिघलती जाए
हूँ दूर मैं तब भी हालत दीवानों सी हुई
आकाश की ऊंचाई मेरे अरमानों ने छुई
बढ़- बढ़ फिर मद्धम- मद्धम मेरी रूह पिघलती जाए
बेकार बहारी मौसम मेरी रूह पिघलती जाए
मेरी सांस- सांस कहती है तेरी साँसों संग चलेगी
चाहे मैं कहीं भी रहूँ पर तेरे सीने ही में पलेगी
चाहे हो जहाँ भी तू हमदम मेरी रूह पिघलती जाए
बेकार बहारी मौसम मेरी रूह पिघलती जाए
इक बार कहा नज़रों ने तुझे देख- देख जी लेंगी
मर जाए ये जिस्म मगर रस तेरे चहरे का पियेंगी
तेरी सूरत मेरा मरहम मेरी रूह पिघलती जाए
बेकार बहारी मौसम मेरी रूह पिघलती जाए
Thursday, March 3, 2011
दाग
इक दाग लगा दिल में और क्या है यहाँ रखा
प्यार का जो किया सजदा टूट ही गई मेरी वफ़ा
उम्मीदे वफ़ा थी जो नाकाम हो गई
और मेरी वफ़ा लुटकर बदनाम हो गई
कोइ रोज़ रहा दिल में हर राज पता रखा
प्यार का जो किया सजदा टूट ही गई मेरी वफ़ा
हर बार हम झुके थे फिर झुक के गिर गए
लौटे थे जिसके दर से उसी दर पे फिर गए
जो मेरा था उसी ने खुद को मुझसे छुपा रखा
प्यार का जो किया सजदा टूट ही गई मेरी वफ़ा
मेरी मौत आये या हम दर मौत के जाएँ
कोइ बता दे रस्म-ए- वफ़ा कैसे निभाएं
जितना जलाया खुद को उसे रोशन कर दिया
प्यार का जो किया सजदा टूट ही गई मेरी वफ़ा
प्यार का जो किया सजदा टूट ही गई मेरी वफ़ा
उम्मीदे वफ़ा थी जो नाकाम हो गई
और मेरी वफ़ा लुटकर बदनाम हो गई
कोइ रोज़ रहा दिल में हर राज पता रखा
प्यार का जो किया सजदा टूट ही गई मेरी वफ़ा
हर बार हम झुके थे फिर झुक के गिर गए
लौटे थे जिसके दर से उसी दर पे फिर गए
जो मेरा था उसी ने खुद को मुझसे छुपा रखा
प्यार का जो किया सजदा टूट ही गई मेरी वफ़ा
मेरी मौत आये या हम दर मौत के जाएँ
कोइ बता दे रस्म-ए- वफ़ा कैसे निभाएं
जितना जलाया खुद को उसे रोशन कर दिया
प्यार का जो किया सजदा टूट ही गई मेरी वफ़ा
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