Friday, September 3, 2010

कोई

कोई तो है जो निगाहों काम लेता है
सहर के बुझते चरागों से काम लेता है
मेरी गिरती हुई पलकों के सहारे के लिए
मेरी पलकें अपनी पलकों से थाम लेता है
मैं जहां भी रहूँ मुझको बुलाने के लिए
किसी बहाने से रब का वो नाम लेता है
कोई तो है जो निगाहों काम लेता है

No comments:

Post a Comment