मेरी मुद्दतों के बाद ये तमन्ना है
तेरी ख्वाहिश में इस दिल को बेकरार करूँ
मेरी रातों को भले रोशनी नसीब न हो
तुम्हारी रातों में उजालों कि मैं भरमार करूँ
मेरी चाहत में भले हो कमी चाहत है पर
तुझसे एकबार इस चाहत का मैं इजहार करूँ
कभी दिया नहीं मैंने अपना तवार्रुफ़ लेकिन
ख्यालहै दिल का कि तेरे लिए अशआर करूँ
तू कहे चाँद सितारे भी मुझसे लाने
मेरी क्या हैसियत कि तुझसे मैं इन्कार करूँ
शाम आये चाहे न रात आये गम ही नहीं
हर सुबह पर नज़र खोलूं तेरा दीदार करूँ
मेरी मुद्दतों के बाद ये तमन्ना है
bahut acha likha hai. aur likho aur likhte raho...
ReplyDeleteThank you Braj Mohan ji
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