Monday, September 6, 2010

इन नयनों से

इन नयनों से तुम नेह निमंत्रण मत पहुँचाओ
देख रही है दुनिया हमको प्रेम छिपाओ
इन नयनों से

मुझे बुलाने से पहले तुम निशा निमंत्रित तो कर लो
सूनी रजनी का शोर जरा आँखों में भर लो
देने को उपहार हमें कुछ मोती तो छलकाओ
इन नयनों से

नित्य बुलाना नित आऊँगी छत पर मिलने
मौन रहो तुम ज़रा अभी दो सूरज ढलने
दे स्पर्श मुझे अभी तुम मत भरमाओ
इन नयनों से

मधुर निशा की मधुर चाँदनी मधुरामृत भरा मन
ही लाओगे होता जबकि विष सा जीवन
संगम का नहीं जल सागर का भर लाओ
इन नयनों से

2 comments:

  1. बहुत खूबसूरत कविता है.
    ------------------
    कृपया कमेन्ट सेटिंग्स में वर्ड वेरिफिकेशन को नो (NO) कर दें.

    सादर

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  2. मुझे बुलाने से पहले तुम निशा निमंत्रित तो कर लो
    सूनी रजनी का शोर जरा आँखों में भर लो
    देने को उपहार हमें कुछ मोती तो छलकाओ

    bahut sunder...

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