ज्यों जलाती रही चाँदनी रात भर
ऐसी पत्तों पे शम्मा घुली थी सुबह
तुम भी रोये हो हमको पता है ये सब
शम्मा बरसी नहीं रात भर इस तरह
ये तुम्हारे हैं आंसू कहाँ मैं समेटूं
नहीं मेरे आँचल की इतनी गिरह
ऐसा बिखरा है सब कुछ मेरे आंगने
जैसे जीवन न हो न हो तुम जिस जगह।
No comments:
Post a Comment