धूप चलती रहे उन हवा के ही संग
फिर क्या हो गरम क्या हो गुनगुना।
तुम चलाते हो क्या लफ़्ज़ों के तीर कुछ
हमने तो अब तलक सब ही ठण्डा सुना।
शायद कुछ गलतियाँ हो गईं तुमसे जो
तुमने बोये बबूल हमने आम ही चुना।
तुमजो आते तो हम भी दिखाते पलट
चाँद रातों को क्या- क्या था सपना बुना।
कुछ है बाकी बहुत कुछ तो जोड़ा मगर
कुछ भगाए कुछों का किया गुना।
जो पकाया था रस उसके चटखारे ले
तुम तो ठण्डे हुए ये कलेजा भुना
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