कोई तो है जो निगाहों काम लेता है
सहर के बुझते चरागों से काम लेता है
मेरी गिरती हुई पलकों के सहारे के लिए
मेरी पलकें अपनी पलकों से थाम लेता है
मैं जहां भी रहूँ मुझको बुलाने के लिए
किसी बहाने से रब का वो नाम लेता है
कोई तो है जो निगाहों काम लेता है ।
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