Wednesday, November 24, 2010

प्यार है या कोइ और

सपनों में मेरे रहा करे फिर भी मुझे खुद से जुदा कहे
ये प्यार है या कोइ और जिसकी नज़र दिल छुआ करे

बातें हैं जिसकी लब पे वही मुझसे कहे तुम नहीं सही
जो मैंने सोचा था वो प्यार की बातें उसने क्यों न कहीं
प्यार को खुदा कहे पर प्यार से जुदा रहे
ये प्यार है या कोइ और जिसकी नज़र दिल छुआ करे

हमको दीवाना जिसने बनाया प्यार का पाठ जिसने सिखाया
उसको दिया दिल तो उसने मेरे प्यार को बेवकूफी बताया
दिल में मेरे जिसकी झलक है लब न जिसे बेवफा कहे
ये प्यार है या कोइ और जिसकी नज़र दिल छुआ करे

सपनों में मेरे रहा करे फिर भी मुझे खुद से जुदा कहे
ये प्यार है या कोइ और जिसकी नज़र दिल छुआ करे

3 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है आपने, शुभकामनाएं.

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  2. मैं करता हूँ जब ज़ाहिर बीवी से जज़्बात अपने
    कहती है वो फ़ुर्सत मिले तो देखूं दिखाऊं जज़्बात अपने
    वो लगी है अपने बच्चों में और मैं ब्लाग पर
    यूं मसरूफ़ होकर हम काटते हैं दिन रात अपने

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