Friday, December 3, 2010

किसी रोज़ हम मिलें

रब हो तो दुआ कर कि किसी रोज़ हम मिलें
ऐ मेरे खुदा कर कि किसी रोज़ हम मिलें
रब हो तो दुआ कर कि किसी रोज़ हम मिलें

जो दिल के ज़ख्म हैं सभी तुमसे ही कहने हैं
आँखों से कहा कर कि किसी रोज़ हम मिलें
मेरे खुदा कर कि किसी रोज़ हम मिलें

चाहो जो मुझे मिलना उम्मीद में इसी
चाहत से वफ़ा कर कि किसी रोज़ हम मिलें
मेरे खुदा कर कि किसी रोज़ हम मिलें

अरदास में रब की जाकर के यही माँगा
मौक़ा तो अता कर कि किसी रोज़ हम मिलें
मेरे खुदा कर कि किसी रोज़ हम मिलें

2 comments:

  1. जो दिल के ज़ख्म हैं सभी तुमसे ही कहने हैं
    आँखों से कहा कर कि किसी रोज़ हम मिलें ....।


    बहुत ही सुन्‍दर एवं भावमय प्रस्‍तुति ।

    ReplyDelete