अब तो ये जिस्म सज़ा लगता है
तेरे बिन बददुआ लगता है
तुमसे हट के थी मांगी तन्हाई
मेरी तन्हाई में इक शोर मचा लगता है
सर्द सा शोर उठा दिल में कहीं
दिल भी अब बाजुबां लगता है
बेजुबान हो गए हैं लफ्ज मेरे
नज़रों को लफ्ज मिला लगता है
मिल के तुमसे हुए दूर गिले
तुमसे हर शिकवा बयाँ लगता है
अब बयाँ कुछ भी कहीं और नहीं
तुमसे मिलना ही अब तो नया लगता है
अब तो ये जिस्म सज़ा लगता है
बेजुबान हो गए हैं लफ्ज मेरे...
ReplyDelete......!!
बेहतरीन।
सर्द सा शोर उठा दिल में कहीं
ReplyDeleteदिल भी अब बाजुबां लगता है
बहुत खूबसूरती से लिखे जज़्बात
सुन्दर अभिव्यक्ति हेतु बधाई!
ReplyDeleteबेजुबान हो गए हैं लफ्ज मेरे
ReplyDeleteनज़रों को लफ्ज मिला लगता है
खूबसूरत शेर है ... सुभान अल्ला ... लाजवाब ग़ज़ल ..
बेजुबान हो गए हैं लफ्ज मेरे
ReplyDeleteनज़रों को लफ्ज मिला लगता है
खूबसूरत शेर