Saturday, November 20, 2010

सज़ा

अब तो ये जिस्म सज़ा लगता है
तेरे बिन बददुआ लगता है

तुमसे हट के थी मांगी तन्हाई
मेरी तन्हाई में इक शोर मचा लगता है

सर्द सा शोर उठा दिल में कहीं
दिल भी अब बाजुबां लगता है

बेजुबान हो गए हैं लफ्ज मेरे
नज़रों को लफ्ज मिला लगता है

मिल के तुमसे हुए दूर गिले
तुमसे हर शिकवा बयाँ लगता है

अब बयाँ कुछ भी कहीं और नहीं
तुमसे मिलना ही अब तो नया लगता है
अब तो ये जिस्म सज़ा लगता है

5 comments:

  1. बेजुबान हो गए हैं लफ्ज मेरे...
    ......!!
    बेहतरीन।

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  2. सर्द सा शोर उठा दिल में कहीं
    दिल भी अब बाजुबां लगता है

    बहुत खूबसूरती से लिखे जज़्बात

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  3. सुन्दर अभिव्यक्ति हेतु बधाई!

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  4. बेजुबान हो गए हैं लफ्ज मेरे
    नज़रों को लफ्ज मिला लगता है

    खूबसूरत शेर है ... सुभान अल्ला ... लाजवाब ग़ज़ल ..

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  5. बेजुबान हो गए हैं लफ्ज मेरे
    नज़रों को लफ्ज मिला लगता है
    खूबसूरत शेर

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