Saturday, May 28, 2011

दर्द

हर दर्द यूँही पी लेंगे हम लोग ऐसे भी जी लेंगे
जब उठने लगेगी उंगली तो अपने होंठों को सी लेंगे
हर दर्द यूँही पी लेंगे हम लोग ऐसे भी जी लेंगे

मैं अपनी कहूँ तू अपनी सुना हम इक दूजे के खैरख्वाह
बस इक दूजे से भूली बिसरी कही सुनी बीती लेंगे
हर दर्द यूँही पी लेंगे हम लोग ऐसे भी जी लेंगे

न तेरी सुनने वाला कोई न मेरी सुनने वाला कोई
हर गम में हर मुश्किल में भी इक दूजे की सुध हम ही लेंगे
हर दर्द यूँही पी लेंगे हम लोग ऐसे भी जी लेंगे

3 comments:

  1. बहुत बढ़िया लिखा है आपने.
    सादर

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  2. सुंदर रचना ,बधाई ....

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