Tuesday, August 10, 2010

खोया बचपन

ढूंढ लाओ कहीं से बचपन मेरा
बचपन में देखा हर सपन मेरा
भुला दूं जवानी की मैं कहानी
वो सुबह की लाली ये शाम सुहानी
मुझे चाहिए बस कहानी सुनाती
मेवे खिलाती वो बुढिया सी नानी
पोपले मुह से जब हंसती खिलखिलाती
प्यार की गंगा सबके दिलों में बहाती
उसने सुनी अपनी नानी से जो
याद करके बताती वो बातें पुरानी
भुला दूं जवानी की मैं कहानी
वो सुबह की लाली ये शाम सुहानी
मेरा बचपन मुझे जो मिल जाए तो
बुढिया नानी को जीवन ये अर्पण मेरा
ढूंढ लाओ कहीं से बचपन मेरा


सावन का पानी जो बरसता दिलों पे
मुस्कराहट छा जाती चेहरे पर फूलों के
हरियाली छा जाती चहु ओर सबके
बैल जुत जाते खेतों में जाकर हलों पे
कागज़ की नावें तैरती हर जगह
ताल तलैया में हर सुबह
मुस्कुराते वो साथी प्यारे- प्यारे से बच्चे
भेद होता नहीं था किसी के दिलों में
सावन का पानी जो बरसता दिलों पे
मुस्कराहट छा जाती चेहरे पर फूलों के
भेद भाव से रहित मुस्कुराता भोला भाला
भूल जाऊं मैं कैसे बचपन मेरा
ढूंढ लाओ कहीं से बचपन मेरा


आज इस मोड़ पर जिन्दगी के कभी
जो याद आ जाते बचपन के साथी सभी
आँखें हो जातीं नम दिल यही चाहता बस
बिछड़े साथी मेरे मिल जाएँ मुझको अभी
अब कहीं गर कोई मिल भी जाते जो तो
पहचानते नहीं यूंही गुजर जाते वो तो
भेद कैसा हुआ ये दिलों में सभी
परिचय देना है पड़ता मिलते हैं वो जभी
आज इस मोड़ पर जिन्दगी के कभी
जो याद आ जाते बचपन के साथी सभी
देता ही नहीं पहचान वो पुरानी
भूल गया मेरा अक्स ये भी दर्पण मेरा
ढूंढ लाओ कहीं से बचपन मेरा

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