Friday, July 30, 2010

मृत्यु के मस्तक पे चढ़ जीवन का हम विश्वास हैं,
कष्ट दुःख की भीड़ में भी मानव का हम उल्लास हैं,
वास हमारा हर ह्रदय हर ह्रदय का हम प्रतिवास हैं,
जो रचाया कृष्ण ने हम वही महारास हैं,
कहते हैं मधुमाह जिसको उस बसंत की शान हैं,
निदान हैं नफरत का हम और प्रेम की पहचान हैं,
ये धरा है गर्व हमारा हम धरा का मान हैं,
हम सुमन हैं बाग़ के ईश्वर का हम वरदान हैं,
यद्यपि निश्चित है हमारा खिल करके मुरझाना,
खिलने से हमको रोकेगा क्या प्रलय का आना,
हवा के संग महक बनकर फिर चलेंगे हम,
हमको कोई मसल देगा तो फिर खिलेंगे हम।

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