Friday, April 22, 2011

रहते हैं कहीं हम

रहते हैं कहीं हम आँखों में
छुपते हैं कभी हम साँसों में
तुम सामने होते हो जिस दम
होते हैं हसीं हम लाखों में

हम हो जाते हैं फ़िदा तुमपे
जब हैं होते तुम्हारी बातों में
रहते हैं कहीं हम आँखों में

हम बेल हैं तुम मेरा हो वो सहारा
जिन्हें ढूंढ़ते हैं हम शाखों में
रहते हैं कहीं हम आँखों में

तुम हमको छोड़ना भी न कभी
के बदल जायेंगे हम राखों में
रहते हैं कहीं हम आँखों में

3 comments:

  1. तुम हमको छोड़ना भी न कभी
    के बदल जायेंगे हम राखों में
    रहते हैं कहीं हम आँखों में.. sundar rachna...

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  2. बहुत सुन्दर भाव...
    सादर बधाई...

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  3. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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