Tuesday, April 21, 2020

पृथ्वी

पृथ्वी की छत पर हम सारे खड़े हैं,
पृथ्वी के भीतर हम सबकी जड़ें हैं।

नहीं बस पेड़-पौधे पृथ्वी की हैं प्रकृति, 
सभी इंसान चलाचल पृथ्वी की हैं आकृति,
फिर भी मेरा ये मेरा करके सब ही लड़े हैं,
पृथ्वी की छत पर हम सारे खड़े हैं। 

देखना हम सबको है झाँक कर अपने भीतर,
मन है उजला हमारा या कि तम ही तम अंतर,
लगी कालिख कि हम सब इसमें नग से जड़े हैं,
पृथ्वी की छत पर हम सारे खड़े हैं।

दे रहे क्या वापस हम पृथ्वी को उसके बदले,
जो भी उसने दिया है चीर सीना कि 'रख ले',
हम क्या दिखा पायेंगे दिल से कितने बड़े हैं,
पृथ्वी की छत पर हम सारे खड़े हैं।

स्वर्ग पृथ्वी को करके पक्ष में इसके ही धर दें,
के जो भी अब करेंगे नाम पृथ्वी के कर दें,
कर तो सकते हैं वो सब जिद पे जो भी अड़े हैं,
पृथ्वी की छत पर हम सारे खड़े हैं।

पृथ्वी से ही उपजे हैं पृथ्वी में ही जाना है,
जो भी इससे लिया है सभी कुछ लौटाना है,
मोह जो करते धन का बन के मिट्टी पड़े हैं,
पृथ्वी की छत पर हम सारे खड़े हैं,
पृथ्वी के भीतर हम सबकी जड़ें हैं।


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