Wednesday, December 7, 2011

तेरा जाना

खो गया मेरा अपना उसको कहाँ से लाऊँ
कहाँ- कहाँ पुकारूं और मैं कहाँ जाऊं

दर- दर जगह- जगह में तुम याद बन बसे हो
हर चीज़ में छुपे हो हर आस में सजे हो
क्या मिन्नतें करूँ कि तुमको मैं फिर से पाऊँ
कहाँ- कहाँ पुकारूं और मैं कहाँ जाऊं

हर पल में तुमको चाहा हर पल में तुम बसे थे
दिल को भी छू के देखा धड़कन में तुम सजे थे
जो तुमसे थी धड़कती धड़कन वो क्या सुनाऊँ
कहाँ- कहाँ पुकारूं और मैं कहाँ जाऊं

मैं खत्म करूँ कैसे किस्सा जो बन गया है
मेरी जिंदगी का आकर हिस्सा जो बन गया है
किस- किस को मैं सुनाऊँ ये हाल क्या बताऊँ
कहाँ- कहाँ पुकारूं और मैं कहाँ जाऊं

मैं चीख के कहती हूँ मेरा सब तो खो गया है
मेरी आँख से जो गिरते कौन आंसू बो गया है
जो बोझ अब है दिल पे पलकों पे मैं उठाऊँ
कहाँ- कहाँ पुकारूं और मैं कहाँ जाऊं

मन इतना भर गया है खाली न हो रहा है 
है तू नहीं लेकिन ये तेरी  याद संजो रहा है
रब करे ये तुझको हरदम तेरी याद से मैं पाऊँ
कहाँ- कहाँ पुकारूं और मैं कहाँ जाऊं
खो गया मेरा अपना उसको कहाँ से लाऊँ



3 comments:

  1. बहुत सुंदर मन के भाव ...आप ने बहुत ही प्यारी कविता लिखी है....

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  2. bhaut hi komal bhaavo ki abhivaykti....

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