तेरी गर्म सांस का आलम मेरी रूह पिघलती जाए
बेकार बहारी मौसम मेरी रूह पिघलती जाए
हूँ दूर मैं तब भी हालत दीवानों सी हुई
आकाश की ऊंचाई मेरे अरमानों ने छुई
बढ़- बढ़ फिर मद्धम- मद्धम मेरी रूह पिघलती जाए
बेकार बहारी मौसम मेरी रूह पिघलती जाए
मेरी सांस- सांस कहती है तेरी साँसों संग चलेगी
चाहे मैं कहीं भी रहूँ पर तेरे सीने ही में पलेगी
चाहे हो जहाँ भी तू हमदम मेरी रूह पिघलती जाए
बेकार बहारी मौसम मेरी रूह पिघलती जाए
इक बार कहा नज़रों ने तुझे देख- देख जी लेंगी
मर जाए ये जिस्म मगर रस तेरे चहरे का पियेंगी
तेरी सूरत मेरा मरहम मेरी रूह पिघलती जाए
बेकार बहारी मौसम मेरी रूह पिघलती जाए
तेरी सूरत मेरा मरहम मेरी रूह पिघलती जाए
ReplyDeleteबेकार बहारी मौसम मेरी रूह पिघलती जाए
क्या बात है ....
बहुत बढ़िया.
सादर
dhanyawaad sir
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