Saturday, October 30, 2010

आँखों में रह लिए

इस दिल का धड़कना क्या कहिये
हम आप की आँखों में रह लिए
अब आप कहीं भी जा रहिये
इस दिल का धड़कना क्या कहिये

सारी रात नहीं कहीं चैन इसे
सारे दिन भी धड़कता रहता है
सारी सुबहें कहीं छुप जाएँ मगर
शामों को नज़र में ही तहिये
इस दिल का धड़कना क्या कहिये

मैं तो रोती रहूँ जब देखूं तुझे
सब नज़ारे नज़र में भरते हैं
हम यहाँ हैं वहां हैं आप खड़े
यूँ दर्दे जिगर फिर क्यूँ सहिये
इस दिल का धड़कना क्या कहिये

अब चाहिए नहीं कुछ भी हमें
देखा है हमने जब से तुम्हें
हमें मिलता रहे अहसास यूँही
खूं बन के मेरी रग में बहिये
इस दिल का धड़कना क्या कहिये

Friday, October 29, 2010

हादसा

यूँही मिल के कहीं खो जाते हैं वो
बन के प्यार हादसा हो जाते हैं वो

जो बुरा ही रहे भला न लगे
सपना बनके पले सच में न चले
छोड़ कर चैन से सो जाते हैं वो
बन के प्यार हादसा हो जाते हैं वो

खाईं कसमें झूठी सारे वादे तोड़े
मेरी मुश्किल में वो साथ मेरा छोड़े
आकर कब्र पे मेरी रो जाते हैं वो
बन के प्यार हादसा हो जाते हैं वो


रात भर की तड़प और दिन की बचैनी
अब तो संग मेरे उम्र भर मेरी रहनी
फिर पलटते नहीं जो जाते हैं वो
बन के प्यार हादसा हो जाते हैं वो

यूँही मिल के कहीं खो जाते हैं वो
बन के प्यार हादसा हो जाते हैं वो

Tuesday, October 26, 2010

चाँद आके मिला

मुझसे चाँद आके मिला कहने लगा और ये के
हैं तुम्हारे ही ये आंसू हैं जो तारे बनकर
अब शर्मिंदा हैं हम खुद पे ही ऐ यार मेरे
दे रहे दर्द ये कैसा हम तुम्हारे बनकर

भूलेंगे हम न कभी भी वो सुहानी सी घड़ी
जब तक तुम साथ थे साथ- साथ चल के मेरे
अब तो हर पल है यहाँ तन्हाई और अँधेरा
कल तक फिरे हम फिजां में बहारें बनकर

मुझको हैं क़ुबूल ये जो आसमां के तारे हैं
तेरी आँखें हैं या आकाश का पैमाना हैं
छलका नहीं एक भी तारा इन्तजार किया
हम नशे में भी साथ चलते किनारे बनकर

अब तो अहसास तेरा सांस के संग चलता है
अब तो खुशबू तेरी फैली है मेरी नस- नस में
तू भले दूर रहे साथ फिर भी रहता है
मेरे लिए सैकड़ों हजारों सहारे बनकर

Saturday, October 23, 2010

दोस्ती

मेरी चाहत से दोस्ती करके
क्या मिला ऐसी दिल्लगी करके

मेरी आँखों में जो आंसू हैं तो खुदा की कसम
आप रोयेंगे ये हंसी करके

हमने सोचा था खुश रहेंगे तुम्हें पाके मगर
रो रहे हैं ये आशिकी करके

तुमको समझा था खुदा तो हमें सजा ये मिली
टूटे पत्थर की बंदगी करके

तुमसे मिलने के पहले मरने की तमन्ना थी
पहली ख्वाहिश को आखिरी करके

बैठे इस आस में कि कोई तो दफ्न कर दे हमें
खत्म हम अपनी जिंदगी करके।

Friday, October 22, 2010

साये

मुझे तेरी मुहब्बत के साये अक्सर ही बहुत तड़पाते हैं
मैं भूलना चाहती हूँ जो पल मुझे भूल से वो याद आते हैं

कुछ धुंधली- धुंधली बात तेरी आंसू से भीगी रात मेरी
दोनों तेरी गली ले जाते हैं और तेरी महक ले आते हैं

जब आज भी पत्ते गिरते हैं मेरे दामन में उड़कर के
कभी फूल जो तुमने फेंके थे वो ही अहसास दिलाते हैं

आँखों से छुआ था तुमने मुझे हाथ नहीं थामा था मेरा
दर्द भरे नगमे तेरे लब के मुझे आज भी तर कर जाते हैं

बिखरे थे कभी जो साँसों में तेरी साँसों के शोले वो
मुझे जाने क्या हलचल दे गए हरदम मेरा मन जलाते हैं।

गिला

हैं तो हम तेरी पनाहों के तलबगार मगर
मुश्किलें और भी हैं बीच की दूरी के सिवा

तुमको मुझ तक भी नहीं लाता है और
मुझको भी रोकता है तुम तक जाने से खुदा

जब भी चाह कि मैं बढाऊँ कदम राह तेरी
दब के ही रह गई सीने में वो आह मेरी

कुछ तेरा गम है मुझे और थोड़ी ख़ामोशी
और कुछ हमको है किस्मत से भी गिला।

Thursday, October 21, 2010

शहर

इस शहर में लोग परेशां नज़र आते हैं
साथ इक हंसी की सौगात ले चलो

भाग दौड़ का है आलम इस तरह के
बस पल दो पल की मुलाक़ात ले चलो

उलझे हुए हैं शख्स जाने किस दयार में
जहाँ की हर ख़ुशी के आलमात ले चलो

शायद किसी के रहने को हो दीवार चार
उसके लिए सारी कायनात ले चलो

शायद कहीं धोखा है मक्कार भी कोइ
इसलिए शतरंज की बिसात ले चलो

पर मासूम कौन- कौन मक्कार है
दिल में ये पहचान बाएहतियात ले चलो

शायद कहीं सितम है कहीं दर्द है चहरे पर
तुम हर किसी के दर्द की निजात ले चलो

गर कर सको ऐसा तो कदम धरो यहाँ
वरना इस शहर की बस याद ले चलो।

Tuesday, October 19, 2010

अदा

मुझे हो रहा है नशा जानेमन
है कैसी तुम्हारी अदा जानेमन

बचता मैं कैसे ख्यालों से तेरे
डूबा है जिनमें खुदा जानेमन

सिर्फ मैं ही नहीं एक दीवाना तेरा
जमाना है तुझपे फ़िदा जानेमन

दिल में उतर जायेंगे हम तेरे
पलकें तो अपनी उठा जानेमन

बस नज़र ही नहीं रग - रग में मेरी
शामिल है तेरा निशां जानेमन।

ख्वाब

लब की हर बात में तेरी चाहत का नशा
मुझको तो हो गया है इस मुहब्बत का नशा

जाने कैसे हुए हर कदम हम रुसवा
लगता है ये है तेरी एक सोहबत का नशा

जिंदगी कुछ न थी बिन तेरे तुम मिले
मुझको तो मिल गया जैसे जन्नत का नशा

साँसें कहती रहीं मेरी धड़कन तुम हो
हो रहा था हमें कैसी राहत का नशा

पर था वो ख्वाब सब मैंने देखे थे जो
आज भी है मुझे तेरी हसरत का नशा

भीड़ में रह के भी हम तो तनहा रहे
तनहा रह के भी तुम क्या जानो फुरकत का नशा

Sunday, October 17, 2010

ख्वाहिश 2

लग कर गले तुम्हारे मैं रो लूँ ये ख्वाहिश है
वरना तो मेरी जिंदगी खुशियों की कब्र है

पाया तुम्हें रूबरू पर कह सका कुछ
तुम्हें देखा इक झलक यही दिल को सब्र है

मुहब्बत का किया सजदा खुदा को भूल कर
लोगों ने कहा मुझको ये शख्स काफ़िर है

तेरी वफ़ा में ही तो ये इल्जाम ओढ़े हैं
तुम ही क्यों कह रहे हो ये मेरा कफ़न है

चाहत कभी जो थी वो आज मर गई
अब तो मेरे अहसास कहीं गहरे दफ्न हैं

मैंने तुम्हें बनाया अंजामे जिंदगी
तुम आके देख लो क्या मेरा हश्र है

ख्वाहिश

लगूं मैं तुम्हारे सीने से
दिल मेरा बेक़रार हो जाये

अब तक होंठों ने जो कहा नहीं कुछ
आज होंठों की हार हो जाये

खुद से मेरा भरोसा टूटे तो
तुमपे बस ऐतबार हो जाये

रातें मेरी हों रातों की रानी
दिन हर मेरा बहार हो जाए

तुम से मिलने की एक ही ख्वाहिश
तुमसे मिलकर हजार हो जाए

यूँ लगूं मैं तुम्हारे सीने से
दिल मेरा बेक़रार हो जाये।

Friday, October 8, 2010

कृष्ण कहाना चाहता हूँ

मैं खँडहर में इक हंसी बसाना चाहता हूँ
जा रहा जो दूर उसको आज मैं
अपनी ख़ामोशी सुनाना चाहता हूँ
मैं खँडहर में इक हंसी बसाना चाहता हूँ
गम में रोते बीते हैं कितने बरस गिनता रहा
एक पल पागल की तरह खिलखिलाना चाहता हूँ
आज इस संसार में सरे सुदामा ही तो हैं
सबके थके पांव पर दृग जल चढ़ाना चाहता हूँ
दे सकूँ इक हंसी किसी होंठ पर तो मैं सदा
सामने वाले के दो आंसू चुराना चाहता हूँ
हाँ बहुत मुश्किल है एक ईंट बननी प्रेम की
हर सुख दुःख की आग में उसको तपाना चाहता हूँ
माँ न छूटे बच्चों से फिर बँट न जाए कोई घर
प्रेम की इंटों से रिश्तों को बनाना चाहता हूँ
प्रेम का इक सूत जो बांधे समस्त इंसानों को
द्रौपदी के चीर सा उसको बढ़ाना चाहता हूँ
जो हैं अंधे हो रहे नफ़रत के तूफानों में बह
उन्हें प्रेम के बल टिका इक तिनका दिखाना चाहता हूँ
न रहे कोई प्रतिस्पर्धा न रहे कोई दुश्मनी
सबके मन से भेदभाव मैं मिटाना चाहता हूँ
ज्वाला न भड़के नफरतों की जल न जाए फिर जहाँ
ईर्ष्या की चिंगारी को मैं दबाना चाहता हूँ
आज के अँधेरे से कल के उजाले अच्छे थे
फूंक कर सूरज की मैं गर्मी बुझाना चाहता हूँ
या तो सोते ही रहें सब लोग अँधेरा रहे
या तो मैं सद्भावना दीपक जलाना चाहता हूँ
ताजे फूल दोस्ती के बिखर जाते पल ही में
गुलाब का इक फूल किताबों में सुखाना चाहता हूँ
आज है हिंसा यहाँ विनाश के कगार तक
मैं विश्व में बधुत्व का बंधन बंधाना चाहता हूँ
दूर इतने जा बसे कि फिर न मुझ तक लौट आये
दर्द दवा की डोर में पतंग सा उड़ाना चाहता हूँ
लोग वादे करके मुकर जाते हैं इस दौर में
मैं बिना किये ही हर वादा निभाना चाहता हूँ
एक दिल में घर नहीं मैं चाहता अमीर होना
सब के दिल में अपने लिए इक घराना चाहता हूँ
जुल्म के खिलाफ हर आवाज़ हो बुलंद अतः
कमजोर से हर मन से मैं डर भगाना चाहता हूँ
गर मेरे सा कृष्ण युद्ध में न उतरे आज तो
अर्जुन को गीता के दरिया में बहाना चाहता हूँ
वक्त रूठता है मुझसे घड़ी-घड़ी जाने क्यों
मैं तो हर वक्त ही उसको मनाना चाहता हूँ
कुछ अलग हो इससे आज जो फिजा है चल रही
पतझड़ के मौसम में मैं बहार लाना चाहता हूँ
इतना सब जब कर सकूँ तो बैठकर किसी छाँव में
सुख चैन की मैं वंशी बजाना चाहता हूँ
द्वापर के कृष्ण को जितना भी सुना है मैंने
अब भले कलयुग का पर कृष्ण कहाना चाहता हूँ।

रात भर

नज़रों से तमाम अश्क गिराए हैं रात भर
तुम्हें याद करके जख्म जगाये हैं रात भर

तुम ख्याल में मेरे थे या के दूर कहीं थे
तुम्हें दूर जान लब ये बुलाये हैं रात भर

मेरे दर्द मुझे ढूंढें उजालों में पनप कर
मैंने चराग फूंक बुझाये हैं रात भर

तन्हाईयाँ हैं साथी अश्कों से सजी महफ़िल
सब यार मैंने दूर भगाए हैं रात भर

सुबह का साथ मेरा अब दिल लुभाएगा
नज़रों से ख़ाब चाँद ने चुराए हैं रात भर
तुम्हें याद करके जख्म जगाये हैं रात भर

Tuesday, October 5, 2010

इक बात है आती दिल में

इतना आसान नहीं है सबकुछ
फिर भी इक बात है आती दिल में
काश अम्बर को भी हम छू पाते
काश होता वो मेरी मंजिल में

इतना आसान नहीं है सबकुछ
फिर भी इक बात है आती दिल में
काश सागर की लहरें गिन पाते
काश होतीं वो मेरे साहिल में

इतना आसान नहीं है सबकुछ
फिर भी इक बात है आती दिल में
काश इस चाँद से हम मिल पाते
काश आता वो मेरी महफ़िल में

इतना आसान नहीं है सबकुछ
फिर भी इक बात है आती दिल में
काश हम होते इतने दिलवाले
काश हम रहते होते हर दिल में

इतना आसान नहीं है सबकुछ
फिर भी इक बात है आती दिल में

तमन्ना

मेरी मुद्दतों के बाद ये तमन्ना है
तेरी ख्वाहिश में इस दिल को बेकरार करूँ

मेरी रातों को भले रौशनी नसीब न हो
तेरी रातों में उजालों की मैं भरमार करूँ

मेरी चाहत में भले हो कमी चाहत है पर
तुझसे इक बार इस चाहत का मैं इजहार करूँ

कभी दिया नहीं मैंने अपना तवार्रुफ़ लेकिन
ख्याल है दिल का कि तेरे लिए अशआर करूँ

तू कहे चाँद सितारे भी मुझसे लाने को
मेरी क्या हैसियत कि तुझसे मैं इनकार करूँ

शाम आये चाहे न रात आये गम ही नहीं
हर सुबह पर नज़र खोलूं तेरा दीदार करूँ।

तमन्ना

Monday, October 4, 2010

तेरी याद

शायद मुझे सूखे हुए गुलाब मिल जाएँ
तेरी याद के पन्नों को टटोला है मैंने
वर्षों से बंद किया दिल के खँडहर का
धीमे से इक कपाट खोला है मैंने
शायद कहीं कुछ लफ्ज़ लरजते हुए मिल जाएँ
आँखों में फिर पुराना खाब घोला है मैंने
शायद थरथराती मिलें तेरी उंगलियाँ
तेरी याद के पन्नों को टटोला है मैंने
शायद मुझे सूखे हुए गुलाब मिल जाएँ

Saturday, October 2, 2010

शमा

हम रात भर जो जला करें वो शमा नहीं बुझ जायेंगे
मुझे देख पिघलता सब ही की आँखों में आंसू आयेंगे
हम रात भर जो जला करें

हमें प्यार जो करते रहे परवाने छू हमें जल गए
हम ऐसे पत्थरदिल नहीं ये दर्द जो सह जायेंगे
हम रात भर जो जला करें

मेरे पास गम हैं और भी रोते रहेंगे रात भर
आंसू बहायेंगे कहीं हम खुद ही में घुल जायेंगे
हम रात भर जो जला करें

तेरी सहर जब आएगी हमें फूंक देना शौक से
हम भी बड़े ही शौक से हंसकर फ़ना हो जायेंगे
हम रात भर जो जला करें वो शमा नहीं बुझ जायेंगे

रहते हैं कहीं हम

रहते हैं कहीं हम आँखों में
छुपते हैं कभी हम साँसों में
रहते हैं कहीं हम आँखों में

तुम सामने होते हो जिस दम
होते हैं हसीं हम लाखों में
रहते हैं कहीं हम आँखों में

हम हो जाते हैं फ़िदा तुमपे
जब हैं होते तुम्हारी बातों में
रहते हैं कहीं हम आँखों में

हम बेल हैं तुम मेरा हो वो सहारा
जिन्हें ढूँढते हैं हम शाखों में
रहते हैं कहीं हम आँखों में

तुम हमको छोड़ना भी न कभी
के बदल जायेंगे हम राखों में
रहते हैं कहीं हम आँखों में

कमी

कैसे मैं कहूँ कि क्या कमी है मेरे पास
तुम जो नहीं हो तो मेरी रातें हैं उदास
कैसे मैं कहूँ कि क्या कमी है मेरे पास

शाम से अँधेरा तड़पते हुए आया
दिन की सिसकियाँ भी लग रहीं थीं आज ख़ास
कैसे मैं कहूँ कि क्या कमी है मेरे पास

सुबह रो रही थी पत्तों पे बूंद- बूंद
चाँद भी भटका था कहीं मेरे आस पास
कैसे मैं कहूँ कि क्या कमी है मेरे पास

बीतते हैं वक़्त यूँही दायरे में ऐसे
कदमों के नीचे जैसे पिस रहा पलाश
कैसे मैं कहूँ कि क्या कमी है मेरे पास

अब तो इंतज़ार है नज़रों के तुम आना
और आ ही जाना हो नहीं मेरा महज कयास
कैसे मैं कहूँ कि क्या कमी है मेरे पास