Wednesday, September 29, 2010

जीवन

ज्यों जलाती रही चाँदनी रात भर
ऐसी पत्तों पे शम्मा घुली थी सुबह
तुम भी रोये हो हमको पता है ये सब
शम्मा बरसी नहीं रात भर इस तरह
ये तुम्हारे हैं आंसू कहाँ मैं समेटूं
नहीं मेरे आँचल की इतनी गिरह
ऐसा बिखरा है सब कुछ मेरे आंगने
जैसे जीवन न हो न हो तुम जिस जगह।

Tuesday, September 28, 2010

ग़ज़ल

धूप चलती रहे उन हवा के ही संग
फिर क्या हो गरम क्या हो गुनगुना।
तुम चलाते हो क्या लफ़्ज़ों के तीर कुछ
हमने तो अब तलक सब ही ठण्डा सुना।
शायद कुछ गलतियाँ हो गईं तुमसे जो
तुमने बोये बबूल हमने आम ही चुना।
तुमजो आते तो हम भी दिखाते पलट
चाँद रातों को क्या- क्या था सपना बुना।
कुछ है बाकी बहुत कुछ तो जोड़ा मगर
कुछ भगाए कुछों का किया गुना।
जो पकाया था रस उसके चटखारे ले
तुम तो ठण्डे हुए ये कलेजा भुना

Monday, September 27, 2010

अहसास

तेरे अहसास समझ लूं मैं, मुझको ऐसा अहसास मिले
नज़रों से दूर रहे तब भी, मुझे दिल के हरदम पास मिले
तेरे अहसास समझ लूं मैं

तेरे दर्द पे हर मेरी आहें हों, तेरे दिल के लिए मेरी राहें हों
कांटे न चुभें तेरे कदमों में ,तेरे कदमों तले मेरी बाहें हों
तेरा स्पर्श मिले मुझको, जब भी कोइ आभास मिले
नज़रों से दूर रहे तब भी, मुझे दिल के हरदम पास मिले
तेरे अहसास समझ लूं मैं

तेरे आंसू मेरी आँखों में हों, मेरी धड़कन तेरी साँसों में हो
किसी भी राह चलूँ मैं कहीं, तू मेरी हर राहों में हो
तू छुप के कभी देख लेना मुझे, तेरे बिन मेरी अखियाँ उदास मिले
नज़रों से दूर रहे तब भी, मुझे दिल के हरदम पास मिले
तेरे अहसास समझ लूं मैं

तेरी तड़प बसे मेरे सीने में, तो मज़ा मिले मुझे जीने में
कुछ रात तेरी यादों में जगकर, डूब जाऊं अश्क पीने में
कदमों में तेरे जमीं हो मेरी, बाहों में तेरी आकाश मिले
नज़रों से दूर रहे तब भी, मुझे दिल के हरदम पास मिले
तेरे अहसास समझ लूं मैं

तेरी हसीं पे मैं कुर्बान होऊं, तू सिसके तो मैं ऐ जान रोऊँ
इक तुझको पाकर रब पालूं, फिर चाहे सारा जहाँ खोऊँ
चाहे मेरे चमन से बहार जाए, मुझे तेरे निकट मधुमास मिले
नज़रों से दूर रहे तब भी, मुझे दिल के हरदम पास मिले
तेरे अहसास समझ लूं मैं

तू उदास होए तो खुशियाँ लाऊं, इक तेरी खातिर कुछ कर जाऊं
और तू न हो मेरे पास अगर, तेरे बिना मैं मर जाऊं
हो जीवन ये मेरा तेरे लिए, मुझे और न कोइ काश मिले
नज़रों से दूर रहे तब भी, मुझे दिल के हरदम पास मिले
तेरे अहसास समझ लूं मैं

Saturday, September 25, 2010

मेरा गम मुझे अज़ीज़ है कुछ दिल के तो करीब है
मेरी आँख में आंसू रहें उम्र भर ये नसीब है
मेरा गम मुझे अज़ीज़ है

कुछ लब सिसकते भी रहें कुछ आँख भीगी भी रहे
क्यों करूं ये ख्वाहिश मेरा गम इक रात पीती भी रहे
मेरे साथ कुछ तो है यहाँ ये बात क्यों अजीब है
मेरा गम मुझे अज़ीज़ है

मेरे आँख कि ये गौहरें हर गौहरों में तू रहे
सब चाहे मेरे चमन से जाए इनमें तेरी खुशबू रहे
मैं हर गौहर समेटती हूँ कोइ क्यों कहे गरीब है
मेरा गम मुझे अज़ीज़ है

मर जाऊंगी तेरी राह में आँखें बिछा कर तू न आ
देखा नहीं होगा किसी ने इस तरह तेरा रास्ता

दिल में रहे तू न दिखे तो नज़र ही बदनसीब है
मेरा गम मुझे अज़ीज़ है

मेरा गम मुझे अज़ीज़ है कुछ दिल के तो करीब है
मेरी आँख में आंसू रहें उम्र भर ये नसीब है

Friday, September 24, 2010

कैफ-ए-दिल

कैफ-ए-दिल क्या बयां करूं तुमसे
तुमको पाने की कितनी ख्वाहिश है
कैफ-ए-दिल क्या बयां करूं तुमसे

ले जाएँ मेरी सदायें तुम तक
इन हवाओं से ये गुजारिश है
कैफ-ए-दिल क्या बयां करूं तुमसे

अब मेरे अश्क यूं बरसते हैं
मुझसे सहमी हुई तो बारिश है
कैफ-ए-दिल क्या बयां करूं तुमसे

तुमने छोड़ा तो ऐसा हाल हुआ
मेहरबान आज मुझपे गर्दिश है
कैफ-ए-दिल क्या बयां करूं तुमसे

तुम मेरे साथ नहीं तो ये आईने कहते
मुझमें जो शख्स है वो मुफलिस है
कैफ-ए-दिल क्या बयां करूं तुमसे

कैफ-ए-दिल क्या बयां करूं तुमसे
तुमको पाने की कितनी ख्वाहिश है
कैफ-ए-दिल क्या बयां करूं तुमसे

Wednesday, September 8, 2010

विरही की गाथा

जीवन में निविड़ सा एकाकीपन
खलता है उस पथ जहाँ प्रिये
तुम छोड़ गई हो साथ मेरा
अब छूटा हुआ है हाथ मेरा

तुम तारकदल के साथ चली
तो मुझे भी दे गई निशा भली
मैं तुमको ढूंढूं आसमान में
तुम मुझे ढूंढ नहीं सकती
पर मुझे रजनी भली लगती
क्योंकि ये दिवा तुम बिन तपती

जो साक्ष्य बनी थी अग्नि कभी
मेरी तुम्हारी सप्तपदी की
वो अब भी साक्ष्य स्वयं ही है
जो मुझे जलाती रहती है
जब जल- जल कर जब तप- तप कर
मैं भी रह जाऊंगा रज कण
तब तुमसे मिलने आऊँगा
तुम मेरी प्रतीक्षा वहीँ करना
जहां गई छोड़ कर साथ मेरा
जब आऊँ पकड़ना हाथ मेरा

जीवन में निविड़ सा एकाकीपन
खलता है उस पथ जहाँ प्रिये
तुम छोड़ गई हो साथ मेरा
अब छूटा हुआ है हाथ मेरा

सच

सच तो है मृत्यु भी सच तो है जीवन भी
सच तो है राम भी सच तो है किशन भी
अपनी अपनी श्रद्धा है कृष्ण को माने या राम को
जाना तो सबको ही है मौत के ही धाम को

Tuesday, September 7, 2010

गरीब

सब अपने- अपने चहरे हैं,
सब जाने हैं, पहचाने हैं
किसने छीना किसने खाया
इस से सब ही अनजाने हैं
क्या किस्मत है क्या नियति है
सब जग का गोरख धंधा है
नेताओं के हमाम में
बस 'आम' है जो नंगा है

Monday, September 6, 2010

इन नयनों से

इन नयनों से तुम नेह निमंत्रण मत पहुँचाओ
देख रही है दुनिया हमको प्रेम छिपाओ
इन नयनों से

मुझे बुलाने से पहले तुम निशा निमंत्रित तो कर लो
सूनी रजनी का शोर जरा आँखों में भर लो
देने को उपहार हमें कुछ मोती तो छलकाओ
इन नयनों से

नित्य बुलाना नित आऊँगी छत पर मिलने
मौन रहो तुम ज़रा अभी दो सूरज ढलने
दे स्पर्श मुझे अभी तुम मत भरमाओ
इन नयनों से

मधुर निशा की मधुर चाँदनी मधुरामृत भरा मन
ही लाओगे होता जबकि विष सा जीवन
संगम का नहीं जल सागर का भर लाओ
इन नयनों से

सत्य

जो तुमसे अजब सा नाता है
सबसे ये कहाँ निभ पाता है
जो तुमसे अजब सा नाता है

हम जलते- जलते रहते हैं
जब भी इसमें कोइ आता है
जो तुमसे अजब सा नाता है

तुम जान भले लो जुदा मत होना
हर दर्द सहा नहीं जाता है
जो तुमसे अजब सा नाता है

जो तुमसे अजब सा नाता है
सबसे ये कहाँ निभ पाता है
जो तुमसे अजब सा नाता है

हालात

अब हो गए हैं मेरे हालात कैसे- कैसे
तुमसे मिलकर हुए हैं जज्बात कैसे- कैसे

जिस रात तुम्हें देखा मेरा चाँद हुआ रौशन
मैंने गुजारी है वो अपनी रात कैसे- कैसे

फूलों ने कहा तुमसे मैं खुश्बू हूँ तुम्हारी
तुम तक पहुँच रही है मेरी बात कैसे- कैसे

मैं देखूं जहाँ तक भी मुझे तुम नज़र आते हो
मेरी तुमसे हो रही है मुलाक़ात कैसे- कैसे

तेरी आँखें मुझे ढूंढें, तेरे लब पुकारते हैं
मेरे दिल पे पड़े तेरे निशानात कैसे- कैसे
अब हो गए हैं मेरे हालात कैसे- कैसे
तुमसे मिलकर हुए हैं जज्बात कैसे- कैसे

Friday, September 3, 2010

कोई

कोई तो है जो निगाहों काम लेता है
सहर के बुझते चरागों से काम लेता है
मेरी गिरती हुई पलकों के सहारे के लिए
मेरी पलकें अपनी पलकों से थाम लेता है
मैं जहां भी रहूँ मुझको बुलाने के लिए
किसी बहाने से रब का वो नाम लेता है
कोई तो है जो निगाहों काम लेता है